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________________ - त्रैवर्णिकाचार । पश्चात् 'ॐ नमोऽर्हते' इत्यादि मंत्र पढ़कर उससे मार्जन करे और सिरपर सींच कर नीचे लिखे अनुसार छह अर्घ देवे। मार्जनं कृत्वा शिरः परिषिच्य षडाणि समुद्धरेत् । ॐ ही सर्वभवनेन्द्रार्चितसमस्ताकृत्रिमचैत्यचैत्यालयेभ्यः स्वाहा ॥१॥ ॐ हीं व्यन्तरेन्द्रार्चितसमस्ताकृत्रिमचैत्यचैत्यालयेभ्यः स्वाहा ॥२॥ ॐ हीं ज्योतिष्केन्द्राचिंतसमस्ताकृत्रिमचैत्यचैत्यालयेभ्यः स्वाहा ॥३॥ ॐ हीं कल्पेन्द्रार्चितसमस्ताकृत्रिमचैत्यचैत्यालयेभ्यः स्वाहा ॥४॥ ॐ ही सर्वाहमिन्द्रार्चितसमस्ताकृत्रिमचैत्यचैत्यालयेभ्यः स्वाहा ॥२॥ ॐ हीं विश्वेन्द्रार्चितमध्यलोकास्थतसमस्तकृत्रिमाकृत्रिमचैत्यचैत्याल येभ्यः स्वाहा ॥६॥षडय॑मन्त्राः। ये छह अर्घ देनेके छह मंत्र हैं। अर्घ चढ़ानेके तीन मंत्रःॐ हीं विश्वचक्षुषे स्वाहा । ॐ हीं अनुचराय स्वाहा । ॐ हीं ज्योतिर्मतये स्वाहा ॥३॥ इत्यर्च्यत्रयमन्त्राः । ये तीन मंत्र तीन अर्घ चढ़ानेके हैं। इन्हें पढ़कर तीन अर्घ चढ़ावे । णमो अरिहंताणमित्यादिमन्त्रेणाष्टोत्तरशतं तथा । चतुःपञ्चाशत्तथा सप्तविंशतिकं जपेत् ॥ १४५ ॥ पश्चात् “णमोअरहेतार्ण” इत्यादि पंच परमेष्ठी मंत्रके एकसौ आठ अथवा चौबन या सत्ताईस जाप देवे ॥ ९॥ इसके बादःस्वयम्भूभगवानहन्परः परमपूरुषः । परमात्मा पवित्रात्मा पवित्रयतु नो मनः ॥ १४६ ॥ देवदेवो महादेवः परात्मा परमेश्वरः । परमः परमब्रह्म स्वयम्भूतः पुनातु नः ॥ १४७ ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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