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________________ त्रैवर्णिकाचार । स्वक्रियानिरतो गेही गृहे चापि विधानतः । करोति पञ्चधाऽऽचारं नदीं गन्तुमशक्तकः ॥ ५७ ॥ सङ्कल्पं सूत्रपठनं मार्जनं चाघमर्षणम् । देवतातर्पणं चैव गृहे पञ्च विवर्जयेत् ।। ५८ ।। जो गिरस्ती अपनी दर रोजकी क्रियाके करनेमें तत्पर है और नदीपर जानेके लिए समर्थ नहीं है तो वह अपने घरपर भी विधिपूर्वक पाँच प्रकारके आचरणको कर सकता है । तथा संकल्प, स्वाध्याय, मार्जन, अधमर्षण और देवता -तर्पण ये पाँच क्रियाएँ घर पर न करे || ५७ ॥ ५८ ॥ अन्त्यजैः खनिताः कूपा वापी पुष्करिणी सरः । तेषां जलं न तु ग्राह्यं स्नानपानाय च कचित् ॥ ५९ ॥ चाण्डाल आदिके द्वारा खोदे गये कुएँ, बावड़ी, पुष्करिणी और तालाबोंका जल नहाने और पीने के लिए कभी काममें न ले ॥ ५९ ॥ पानीसे बाहर निकलनेके मंत्र । अथ जलान्निर्गमनमन्त्रः । ॐ नमोऽर्हते भगवते संसारसागरनिर्गताय अहं जलान्निर्गच्छामि स्वाहा । जलान्निर्गमनमन्त्रः । यह मंत्र बोलकर पानीसे बाहर निकले । ॐ ही वी वी अहं हं सः परमपावनाय वस्त्रं पावनं करोमि स्वाहा । स्नानकाले सन्धौतवस्त्रप्रोक्षणम् । इस मंत्र को पढ़कर स्नान करते समय जो कपड़े धोये थे उनका प्रोक्षण करे । ॐ श्वेतवर्णे सर्वोपद्रवहारिणि सर्वमहाजनमनोरञ्जनि परिधानोत्तरीयधारिणि हं झं वं मं हं सं तं परिधानोत्तरीयं धारयामि स्वाहा । इत्यनेन पूर्वप्रक्षालितप्रोक्षितनिर्द्रववस्त्रद्वयेनान्तरीयोत्तरीयसन्धारणम् । ६१ इस मंत्र को पढ़कर पहले धोए हुए तथा प्रोक्षण किय गये दोनों वस्त्रोंको पहने तथा ओढ़े । आचमन करनेकी विधि । उपस्थित्वा शुचौ देशे स्नात्वाऽस्नात्वा तथैव च । aasari कर्तव्यस्ततोऽसौ शौचवान्मतः ॥ ६० ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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