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________________ (७५२) अथवा श्रेष्ठपाषाणादिमय विशाल जिनप्रासाद बनवाना. इतनी शक्ति न होवे तो श्रेष्ठ काष्ठ. ईंटोंआदिसे जिनमंदिर बनवाना. यह करनेकी भी शक्ति न होवे तो जिनप्रतिमाके लिये न्यायोपार्जित धनसे घासकी झोपड़ी तो भी बनवाना. कहा है किन्यायोपार्जित धनका स्वामी, बुद्धिमान्, शुभपरिणामी और सदाचारी श्रावक गुरुकी आज्ञासे जिनमंदिर बनवानेका अधिकारी होता है. प्रत्येकजीवने प्रायः अनादिभवमें अनन्तों जिनमंदिर और अनन्त जिनप्रतिमाएं बनवाई; परन्तु उस कृत्यमें शुभपरिणाम न होने के कारण उनको समकितका लवलेश भी लाभ नहीं मिला. जिसने जिनमंदिर तथा जिनप्रतिमाएं नहीं बनवाई, साधुओंको नहीं पूजे और दुर्धरव्रतको अंगीकार भी नहीं किया, उन्होंने अपना मनुष्यभव वृथा गुमाया. यदि पुरुष जिनप्रतिमाके लिये घासकी एक झोंपड़ी भी बनाता है, तथा परमगुरुको भक्तिसे एक फूल भी अर्पण करता है, तो उसके पुण्यकी गिन्ती ही नहीं हो सकती. और जो पुण्यशाली पुरुष शुभपरिणामसे विशाल, मजबूत और नक्कुर पत्थरका जिनमंदिर बनवाता है, उसकी तो बात ही क्या है ? वे अतिधन्य पुरुष तो परलोकमें विमानवासी देवता होते हैं. जिनमंदिर बनवाने की विधि तो पवित्र भूमि तथा पवित्र दल (पत्थर काष्ठआदि ) मजदूरआदिको न ठगना, मुख्यकारीगरका
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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