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________________ (६५७) जाति ज्ञातिके आडम्बरसे कुछ नहीं होता. वनमें उत्पन्न हुआ पुष्प ग्रहण किया जाता है, और प्रत्यक्ष अपने शरीरसे उत्पन्न हुआ मल त्याग दिया जाता है. गुणहीसे जगत्में महिमा बढती है स्थूल शरीर अथवा पकी हुई बडी अवस्था (वय) से महिमा नहीं बढती. देखो, केवडेके बडे और जूने पत्ते अलग रह जाते हैं, पर भीतरके छोटे २ नये पत्तोंको सुगंधित होनेसे सब कोई स्वीकारते हैं. इसी प्रकार जिससे कषायादिककी उत्पत्ति होती हो; उस वस्तुका अथवा उस प्रदेशका त्याग करनेसे उन दोषोंका नाश होजाता है. कहा है कि--जिस वस्तुसे कषायरूप अग्निकी उत्पत्ति होती है, उस वस्तुको त्याग देना, और जिस वस्तुसे कषायका उपशम होता है उस वस्तुको अवश्य ग्रहण करना चाहिये. सुनते हैं कि, स्वभावहीसे क्रोधी चंडरुद्र आचार्य, क्रोधकी उत्पत्ति न होनेके हेतुसे शिष्योंसे अलग रहे थे. संसारकी अतिशय विषमस्थिति- प्रायः चारों गतिमें अत्यन्त दुःख भोगा जाता है, उस परसे विचारना. जिसमें नारकी और तिर्यच इन दोनोंमें आतिदुःख है वह तो प्रसिद्धही है. कहा है कि--सातों नरकभूमिमें क्षेत्रवेदना और बिना शस्त्रएक दूसरेको उपजाई हुई वेदना भी है. पांच नरकभूमिमें शस्त्र जन्य वेदना है और तीनमें परमाधार्मिकदेवताकी करी हुई वेदना भी है. नरकमें अहर्निशि पडे हुए नारकीजीवोंको आंख बन्द हो इतने काल तक भी सुख नहीं, लगातार दुःखही दुःख है.
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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