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________________ (५८६) ऐसी सुन्दरनगरीमें प्रवेश करनेके अनन्तर राजाने कुमार को अनेकजातिके अश्व, दास, दासियां, धनआदि बहुतसी वस्तुएं भेट की. तदनन्तर कुमार अपनी दोनों स्त्रियोंके साथ वहीं एकमहल में रहने लगा. उक्त तोता कौतुकके साथ व्यासकी भांति हमेशा कुमारके साथ समस्यापूर्ति, आख्यायिका, प्रहेलिकाआदि भांति भांतिके विनोद किया करता था. कुमारने देदीप्यमान श्रेष्ठलक्ष्मीकी प्राप्तिसें मानो मनुष्य सदेह स्वर्ग चला गया हो, इस प्रकार पूर्वकी कोई भी बात स्मरण नहीं की. वह नानाप्रकारके कामविलास भोगते एक वर्ष सहजहीमें व्यतीत होगया. दैवयोगसे एक समय नीच लोगोंको हर्ष देनेवाली रात्रिके वक्त कुमार पोपटके साथ बहुत देर तक वार्तालापरूप अमृतका पान कर रत्नजडित श्रेष्ठ शय्यागृहमें सो रहा था. जब अंधकारसे समस्तलोगोंकी दृष्टिको दुःख देनेवाला मध्यरात्रिका समय हुआ तव सब पहरेदार भी निद्रावश होगये. इतने में दिव्य. आकारधारी, देदीप्यमान और मूल्यवान शृंगारसे सुसज्जित, चोरगतिसे चलनेवाला व हाथमें नग्न तलवार धारण किये हुए कोई क्रोधी पुरुष, मनुष्योंके नेत्रोंकी भांति राजमहलके सर्व द्वार बन्द होते हुए भी, न जाने किस प्रकार वहां आ पहुंचा. वह चुपचाप शय्यागृहमें घुसा, तो भी दैवकी अनुकूलतासे शीघ्रही कुमार जागा. ठीकही है, सत्पुरुषोंकी निद्रा स्वल्प व शीघ्र
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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