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________________ ( ५६४ ) मात्र में उतारेगा. जो इस कुमारको क्रोध चढेगा तो युद्धकी बात तो दूर रही ! परंतु तुमको भागते २ भी भूमिका अंत न मिले. " विद्याधरके सुभट वीरपुरुषके समान तोते की ऐसी ललकार सुनकर घबराये, चकित हुए, डर गये और मनमें सोचने लगे कि यह कोई देवता अथवा भवनपति तोते के रूप में बैठा है. यदि ऐसा न होता तो यह इस प्रकार विद्याधरोंको भी ललकार से कैसे बोलता? कुमार कैसा भयंकर है ? कौन जाने ? आजतक विद्याधरोंके भयंकर सिंहनाद भी हमने सहन किये हैं, परन्तु आज एक तोते की यह तुच्छ ललकार हमसे क्यों नहीं सहन होता है ? जिसका तोता भी ऐसा शूरवीर है कि जो विद्याधरों तकको भय उत्पन्न करता है तो वह कुमार कौन जाने कैसा होगा ? युद्ध में निपुण होने पर भी अपरिचितके साथ कौन युद्ध करे ? कोई तैरनेका अहंकार रखता हो तो भी क्या वह अपारसमुद्रको तैर सकता है ?" भयभीत हुए, आकुलव्याकुल हुए और पराक्रमसे भ्रष्ट हुए समस्त विद्याधरसुभट तोतेकी ललकार सुनते ही उपरोक्त विचार कर शियालियोंकी भांति भाग गये ! जैसे बालक पिता के पास जाकर कहते हैं वेंसे उन सुभटोंने भी अपने राजा के पास जाकर संपूर्ण वृत्तान्त कहा. सुभटोंका वचन सुनते ही विद्याधरराजा के नेत्र क्रोधसे रक्त हो गये और बिजली के समान इधर उधर चमक मारने लगे और ललाट पर चढ़ाई हुई
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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