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________________ ( ४७६ ) हैं | भाइयोंने परस्पर धर्मकृत्यकी भली प्रकार याद कराना. कहा है कि भवागमज्झमि पमायजलणजलिअंमि मोहनिहाए । उठुवइ जो सुअंतं, सो तस्स जणो परमबंधू ॥ १ ॥ जो पुरुष, प्रमादरूप अग्निसे जलते हुए संसाररूप घर में मोहनिद्रा से सोते हुए मनुष्यको जगाता है वह उसका परमबन्धु कहलाता है । भाइयोंकी पारस्परिक प्रीति ऊपर भरतका दूत आने पर श्री ऋषभदेव भगवानको साथ पूछनेको गये हुए अट्ठानवे भाइयोंका दृष्टान्त जानो मित्रके साथ भी भाई के समान बर्ताव करना चाहिये. ( १२ ) इभाइगयं उचि, पणइणिविसयपि किंपि जंपेमो ॥ सप्पणयवयणसम्माणणेण तं अभिमुहं कुणइ ॥ १३ ॥ अर्थ :-- इस प्रकार भाईके सम्बन्धमें उचितआचरण कहा. अब भार्या के विषय में भी कुछ कहना चाहिये. पुरुषने प्रीतिवचन कह योग्य मान रख अपनी स्त्रीको स्वकार्य में उत्साहित रखना. पतिका प्रीतिवचन एक संजीवनी विद्या है. उससे शेष सम्पूर्ण प्रीति सजीव होजाती है. योग्य अवसरमें प्रीतिवचनका उपयोग किया होवे तो वह दानादिकसे भी अत्यधिक गौरव उत्पन्न करता है. कहा है कि- न सद्वाक्यात्परं वश्यं, न कलायाः परं धनम् । न हिंसायाः परोऽधर्मो, न सन्तोषात्परं सुखम् ॥ १ ॥
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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