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________________ (३८१) उसके स्थान पर हाथमें रांपी रखनेवाले एक मोचीको नियुक्त किया. वह कामकाजके कागजों पर सहीकी निशानीके रूपमें रांपी लिखता था. उसका वंश अभी भी दिल्लीमें मान्य है. इस प्रकार राजादिक प्रसन्न होवें तो ऐश्वर्य आदिका लाभ होना अशक्य नहीं. कहा है कि-सांटे का खेत, समुद्र, योनिपोषण और राजाका प्रसाद ये तत्काल दरिद्रता दूर करते हैं. सुखकी इच्छा करनेवाले आभिमानी लोग राजाआदिकी सेवाकी भले ही निन्दा करें; परन्तु राजसेवा किये बिना स्वजनका उद्धार और शत्रुका संहार नहीं हो सकता. कुमारपाल भाग गया तब वोसिरब्राह्मणने उसे सहायता दी, जिससे उसने प्रसन्न हो अवसर पाकर उस ब्राह्मणको लाटदेशका राज्य दिया. देवराजनामक कोई राजपुत्र जितशत्रुराजाके यहां पौरियेका काम करता था. उसने एक समय सर्पका उपद्रव दूर किया, जिससे प्रसन्न हो राजा जितशत्रुने देवराजको अपना राज्य दे स्वयं दीक्षा लेकर सिद्धि प्राप्त की. मन्त्री, श्रेष्ठी, सेनापति आदिके कार्योंका भी राजसेवामें समावेश हो जाता है. ये मन्त्रीआदिके कार्य बडे पापमय हैं, और परिणाममें कडवे हैं. इसलिये वास्तवमें श्रावकके लिये वर्जित हैं. कहा है कि-जिस मनुष्यको जिस अधिकार पर रखते हैं वह उसमें चोरी किये बिना नहीं रहता. देखो, क्या धोबी अपने पहरनेके वस्त्र मोल लेकर पहिनता है ? मनमें आधिकाधिक चिन्ता
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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