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________________ (३७८) घोडेसे सौ योजन जानेका विचार करता है, अथवा वह निरर्थक है । कामंदकीयनीतिसारमें भी कहा है कि वृद्धोपसेकी नृपतिः, सतां भवति संमतः। प्रेर्यमाणोऽप्यसद्वृत्तै कार्येषु प्रवर्तते ॥ १ ॥ वृद्धपुरुषोंकी सम्मतिसे चलनेवाला राजा सत्पुरुषोंको मान्य होता है. कारण कि, दुष्टलोग कदाचित् उसे कुमार्गमें अग्रेसर करें, तो भी वह नहीं जाता. स्वामीने भी सेवकके गुणानुसार उसका आदर सत्कार करना चाहिये. कहा है कि निर्विशेषं यदा राजा, समं भृत्येषु वर्तते । तत्रोद्यमसमर्थानामुत्साहः परिहीयते ॥ १ ॥ जब राजा अच्छे व अयोग्य सब सेवकोंको एक ही पंक्तिमें गिने तो उद्यमी सेवकोंका उत्साह टूट जाता है। सेवकने भी अपनेमें भक्ति, चतुरता आदि अवश्य ही रखना चाहिये. कहा है कि अप्राज्ञेन च कातरेण च गुणः स्यात्सानुरागेण कः ?, प्रज्ञाविक्रमशालिनोऽपि हि भवेत् किं भक्तिहीनात्फलम् । प्रज्ञाविक्रमभक्तयः समुदिता येषां गुणा भूतले, ते भत्या नृपते: कलत्रमितरे संपत्सु चापत्सु च ॥ १ ॥ सेवक स्वामिभक्त होवे तो भी यदि वह बुद्धिहीन व कायर होवे तो उससे स्वामीको क्या लाभ? और जिसमें भक्ति नहीं है ऐसे बुद्धि और पराक्रमवालेसे भी क्या लाभ है? अतएव जिसमें
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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