SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१८७) तक प्रभातसंध्याका समय कहलाता है। सूर्यबिम्बके आधे अस्तसे लेकर दो तीन नक्षत्र आकाशमें न दीखें, तब तक सायंसंध्याका समय है । मल मूत्रका त्याग करना होवे तो जहां राख, गोबर, गायोंका रहेठाण, राफडा, विष्ठा आदि हो, वह स्थान तथा उत्तम वृक्ष, अग्नि, मार्ग, तालाब इत्यादिक, स्मशान, नदीतट तथा स्त्रियों तथा अपने बडीलोंकी जहां दृष्टि पडती होवे, ऐसे स्थान छोडना । ये नियम उतावल न हो तो पालना, उतावल होने पर सर्व नियम पालना ही चाहिये ऐसा नहीं। . __श्रीओघनियुक्तिआदिग्रंथोंमें भी साधुओंके उद्देश्यसे कहा है कि- जहां किसी मनुष्यका आवागमन नहीं, तथा जिस स्थान पर किसीकी दृष्टि भी नहीं पडती, जहां किसीको अप्रीति उपजनेसे शासनके उड्डाहका कारण और ताडनादिक होनेका संभव नहीं,समभूमि होनेसे गिरनेकी शंका नहीं, जो तृण आदिसे ढका हुआ नहीं, जहां बिच्छू, कीड़ी आदिका उपद्रव नहीं, जहां की भूमि अग्निआदिके तापसे थोडे समयकी अचित्त की हुई है, जिसके नीचे कमसे कम चार अंगुल भूमि अचित्त है, जो वाडी, बंगला आदिके समीपभागमें नहीं है, कमसे कम एक ही हाथ विस्तार वाला, चूहे कीडी आदिके बिल, त्रसजीव तथा जहां बीज ( सचित्त धान्यके दाने आदि ) नहीं ऐसे स्थानमें मल मूत्रका त्याग करना । ऊपर तृण आदिसे ढंका
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy