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________________ ७६ : पंचलिंगीप्रकरणम् नरक से निकल कर जीव होता तिर्यंच, वहाँ से नारक फिर तिर्यंच। दमन, अंकन आदि के दुःख, और, भूख-प्यास-भय के अत्यंत ।। ३८।। नरकसम दुःख भोगता वहाँ भी, मनुष्यगति में भी उदय होते दुष्कर्म। जीव जन्मकर हीन कुल जाति में, करता निन्दित-हीन कर्म ।। ३६ ।। ३८-३६. नरक से अनन्त दुःख भोगकर कर्मक्षय से वहाँ से निकलने पर जीव तिर्यंच गति में जन्म लेता है, वहाँ से पुनः नारक के रूप में तथा फिर तिर्यंच गति में जन्म लेकर वहाँ भी दमन-उत्पीड़न, अंकन आदि तथा भूख-प्यास-भय आदि के अनेक नरकसम दुःखों को भोगता है। यहाँ तक कि मनुष्य गति में जन्म लेने पर भी जीव अशुभ कर्मोदयवशात् हीन कुल-जाति में जन्म लेकर हीनातिहीन कर्म करने के लिये नियुक्त होता है तथा फिर नवीन कर्म-बन्ध करता है। भावार्थ : संसार दुःखमय है इस तथ्य को रेखांकित करने के लिये शास्त्रकार सांसारिक पुनर्जन्म प्रक्रिया में होने वाले दुःखों का वर्णन करते हैं। इन गाथाओं में जीव द्वारा नरक में भोगे जाने वाले दुःखों के अतिरिक्त मनुष्य योनि में जन्म लेनेपर भी अनेक दुःख है इस तथ्य का प्रतिपादन किया गया है।
SR No.023142
Book TitlePanchlingiprakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Beliya
PublisherVimal Sudarshan Chandra Parmarthik Jain Trust
Publication Year2006
Total Pages316
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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