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________________ पञ्चलिङ्गीप्रकरणम् पुरोवाक् अहिंसा आधारित जिन प्रतिपादित जैन-धर्म का मूल मंत्र है 'जियो और जीने दो' जो इसे वास्तविक अर्थों में जीवन-धर्म बनाता है। इस जीवन-धर्म के कालजयी सिद्धान्तों तथा उनको जीवन में ढालने के निमित्त प्रविधित आचार नियमों के विवेचन के प्रयास विभिन्न व्याख्याकारों तथा लेखकों द्वारा समय २ पर अपने काल की मांग के अनुसार किये जाते रहे हैं जो समयानुसार प्रभावशाली भी रहे हैं। वर्तमान समय की मांग है जैन-धर्म के सिद्धान्तों तथा आचार-नियमों की सरल लोकभाषा में ऐसी प्रस्तुति जिसे जनसामान्य सरलता से पढ़कर हृदयंगम कर सकें। इसके अतिरिक्त जैन-सिद्धान्तों का मानवजीवन में आने वाली विभिन्न समस्याओं के साथ ऐसा संबंध उद्घाटित करना जिससे वे सिद्धान्त उनके मानने वालों की उन समस्याओं के निराकरण में सहायक हो सकें। मुझे हार्दिक प्रसन्नता है कि डॉ. हेमलता बोलिया व डॉ. (कर्नल) दलपतसिंहजी बया 'श्रेयस' ने जैन-दर्शन के एक अति महत्त्वपूर्ण पहलू - सम्यक्त्वलिंग पर श्रीमज्जिनेश्वरसूरि द्वारा प्रणीत विद्वत्तापूर्ण ग्रंथ 'पंचलिंगीप्रकरणम्', जो अभी तक हिन्दी व अन्य आधुनिक भाषाओं में अनूदित नहीं हुआ है, का सरल व हृदयग्राही हिन्दी व आंग्लानुवाद ही नहीं किया है, अपितु इसकी प्राकृत गाथाओं की संस्कृतछाया, रोमन लिप्यांतर, व पद्यानुवाद जैसे श्रमसाध्य कार्य करके जिज्ञासु पाठको के लिये एक उपयोगी कृति प्रस्तुत करने का स्तुत्य कार्य किया है। ग्रंथ के प्रारंभ में ही दिये गए सम्यग्दर्शन का दिग्दर्शन, तथा ग्रंथ व ग्रंथकार पर एक शोधपरक परिचयात्मक निबंध इस पुस्तक को अवश्य ही एक विशिष्ट आयाम देते हैं। पुस्तक के कलेवर का संयोजन काल्पनिकता व सौन्दर्यबोध के साथ किया गया है। इसमें प्रत्येक गाथा पर आमने-सामने हिन्दी व आंग्ल भाषाओं
SR No.023142
Book TitlePanchlingiprakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Beliya
PublisherVimal Sudarshan Chandra Parmarthik Jain Trust
Publication Year2006
Total Pages316
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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