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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन
अथवा आत्मस्वरूप में लीन होना कायोत्सर्ग है। प्रत्याख्यान- भविष्य में लग सकने वाले दोषों से बचने के लिए अयोग्य वस्तुओं का त्याग करना प्रत्याख्यान है। अविरति और असंयम के प्रतिकूल रूप में मर्यादा स्वरूप आगार के साथ प्रतिज्ञा ग्रहण करना प्रत्याख्यान है।36
ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता है कि दर्दुर ने अपने पूर्व जन्म का स्मरण करते हुए भगवान महावीर के समीप समस्त प्राणातिपात, परिग्रह और चार प्रकार के आहारों का पूर्ण प्रत्याख्यान किया।37 दस प्रत्याख्यान
__ भगवती सूत्र, स्थानांग वृत्ति, आवश्यक नियुक्ति और मूलाचार में दस प्रत्याख्यानों238 का वर्णन इस प्रकार मिलता है:(1) अनागत
__पर्युषण आदि पर्व में जो तप करना चाहिए वह तप पहले कर लेना जिससे कि पर्व के समय वृद्ध, रूग्ण, तपस्वी आदि की सेवा सहज रूप से की जा सके। (2) अतिक्रान्त
जो तप पर्व के दिनों में करना चाहिए वह तप पूर्व के दिना में सेवा आदि का प्रसंग उपस्थित होने से न कर सकें तो उसे अपर्व के दिनों में करना चाहिए। (3) कोटि सहित
__जो तप पूर्व में चल रहा हो उस तप को बिना पूर्ण किए ही अगला तप प्रारम्भ कर देना, जैसे- उपवास का बिना पारणा किए ही अगला तप प्रारम्भ करना। (4)नियंत्रित
जिस दिन प्रत्याख्यान करने का विचार हो उस दिन रोग आदि विशेष बाधाएँ उपस्थित हो जाएँ तो भी उन बाधाओं की परवाह किए बिना जो मन में प्रत्याख्यान करने का लक्ष्य धारण किया है तद्नुसार प्रत्याख्यान कर लेना। (5) सागार
प्रत्याख्यान करते समय मन में विशेष आगार कि अमुक प्रकार का कोई कारण विशेष उपस्थित हो जाएगा तो मैं उसका आगार रखता हूँ- इस प्रकार मन
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