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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन उस युग में पशु-पक्षियों को भी प्रशिक्षण दिया जाता था। प्रशिक्षित पशु-पक्षी अपनी कला के प्रदर्शन से दर्शकों का मन मोह लेते थे। चतुर्थ अध्ययन : कूर्म इस अध्ययन में दो कछुओं के उदाहरण ये यह बोध दिया गया है कि जो साधक अपनी इन्द्रियों को पूर्ण रूप से वश में रखता है उसको किंचित भी क्षति नहीं होती और जो साधक अपने मन और इन्द्रियों को वश में नहीं रखता उसका पतन अवश्यंभावी है। सूत्रकृतांग में भी संक्षेप में कूर्म के रूपक को साधक के जीवन से जोड़ा गया है। श्रीमद् भगवद्गीता में भी 'स्थितप्रज्ञ' के स्वरूप का विश्लेषण करते हुए कछुए का दृष्टांत दिया गया है। पञ्चम अध्ययन : शैलक इस अध्ययन में वर्णित थावच्चा नामक सेठानी महान प्रतिभा सम्पन्न नारी थी जो पूर्ण स्वतंत्र, निर्भीक, साहसी एवं पुत्र वत्सला थी। उसके इकलौते पुत्र थावच्चापुत्र को अरिष्टनेमि का प्रवचन सुनकर वैराग्य उत्पन्न हो गया। वासुदेव कृष्ण ने उनकी दीक्षा का समुचित प्रबन्ध किया। अर्द्धभरतक्षेत्र के अधिपति होते हुए भी कृष्ण वासुदेव में अहंकार नहीं था, वे प्रजावत्सल एवं प्रजा का पूर्ण ध्यान रखने वाले अध्यात्मप्रेमी राजा थे। इस अध्ययन में अनेक दार्शनिक गुत्थियों को भी सुलझाया गया है। शौचधर्म की अवधारणा को रेखांकित करते हुए जैनधर्म सम्मत शौचधर्म की सरल दार्शनिक प्रस्तुति की गई है। शैलक राजर्षि का रोग परीषह के कारण उपचार प्रक्रिया के दौरान शिथिलाचारी होने और शिष्य पंथक द्वारा उनके प्रमाद का परिहार करके उन्हें पुनः संयम के प्रति जागृत करने का मार्मिक विवेचन शिष्य के कर्तव्यों का आदर्श स्वरूप प्रस्तुत करता है। षष्ठम अध्ययन : तुम्बक इस अध्ययन में दर्शन जगत् के गंभीर और सर्वाधिक चर्चित विषय कर्मवाद का रूपक के माध्यम से वर्णन किया गया है। तूंबे के रूपक द्वारा जीव 28
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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