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ज्ञाताधर्मकथांग में शिक्षा 138. आवश्यक नियुक्ति (हारिभद्रीय वृत्ति) 155. स्थानांगसूत्र 4/3/422 -179
156. वही 4/3/423 139. भगवती सूत्र 1/1/1 (अभयदेव वृत्ति) 157. ज्ञाताधर्मकथांग 1/1/207-208, 1/19/29 140. निषेकादीनि कर्माणि यः करोति यथाविधि। 158. वही 1/1/100 सम्भावयति चान्नेन स विप्रो गुरुरूच्यते। 159. वही 1/5/6
- मनुस्मृति- 2.142 160. रायपसेणइय-सुत्तं, सूत्र-191, पृ. 329 141. ज्ञाताधर्मकथांग 1/1/4
161. ज्ञाताधर्मकथांग 1/1/114,159 142. आवश्यक नियुक्ति --136
162. वही 1/5/13-24 143. व्यवहार सूत्र 3.5
163. वही 1/5/53,68 144. संगहणुग्गहकुसलो सुत्तत्थविसारओ 164. वही 1/8/138,190
पहियकित्तो। किरिआचरणसुजुतो 165. वही 1/16/219,228 गाहुयआदेजवयवो य।।
166. वही 1/19/23,29 -मूलाचार -158, पृ. 133 167. जहा निसंते तवणच्चिमाली पभासई केवल 145. गंभीरो दुहरिसो सूरो धम्मप्पहावणासीलो। भारहं तु। एवायरिओ सुअसीलबुद्धिए,
खिदिससिसायरसरओ कमेण तं सो दु विरांयई सुरमज्झेव इंदो।। संपत्तो।।
-दशवैकालिक- 9/1/14 ___ -मूलाचार -159, पृ. 133-134 168. जहा ससी कोमुइजोगजुत्तो, नक्खत्ततारागण 146. 1. पंचिंदिय-संवरणो, तह नवविह
परिबुडप्पा। खे सोहई विमले अब्भमुक्के, बंभचेर-गुत्तिधरो। चउविह-कसाय एवं गणी सोहइ भिक्खुमज्झे।। मुक्को, इअ अट्ठारसगुणेहि संजुत्तो।।
-वही 9/1/15 2. पंचमहव्वय-जुत्तो, पंचविहायार- ___ 169. मनुष्यचर्मणा बद्ध साक्षात्पर शिवः स्वयं । पालणसमत्थो। पंचसमिओ तिगुत्तो,
-ब्रह्माण्डपुराण 4/43/68 छत्तीसगुणो गुरुमज्झ।।
170. सोवागकुलसंभूओ, गुणत्तरधरो मुणी। -सामायिक सूत्र 3/1/,2, पृ. 161 हरिएसबलोनाम, आसि भिक्खू 147. जीवन्धर चम्पू, पृ. 257
जिइन्दिओ।। 148. कठोपनिषद् 1/2/9
- उत्तराध्ययन 12/1 149. याज्ञवल्क्य स्मृति 1/212
171. ज्ञाताधर्मकथांग 1/1/6, 2/1/2-3 150. महाभारत (उद्योग पर्व) 33/28 172. वही 1/1/6 151. वही -33/28
173. वही 1/5/65 152. महाभारत (विराट पर्व) - 53/4-6 174. आचारांगसूत्र 2/14/1/6, शोभाचन्द्र भारिल्ल 153. मालविकाग्निमित्र -1
175. उत्तराध्ययनसूत्र 1/2, 9, 22, 27, 41 154. चत्तारि फला पण्णतता, तं जहा - ___ 176. वसे गुरुकुले निच्च जोगवं उवहाणवं।
आमलगमहुरे, मुद्दियामहुरे, खीरमहुरे, पियंकरे पियंवाई से सिक्खं लद्भुमरिहई ।। खंडमहुरे । एवामेव, चत्तारि आयरिया
-वही 11/14 पण्णत्ता, तंजहाआमलगमहुरफलमाणे, 177. (i) अह अट्ठहिं ठाणेहिं सिक्खासीले ति जाव (मुद्दियामहुर-फलसमाणे,
वुच्चई। अहस्सिरे सया दन्ते न य खीरमहुरफलमाणे)। -स्थानांगसूत्र 4/3/...- मम्ममुदाहरे।। 411 पृ. 341 (मधुकर मुनि)
- वही 11/4
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