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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन होता है। तब कृष्ण वासुदेव पाण्डवों के समक्ष यह मनोवैज्ञानिक तथ्य रखते हैंहे पाण्डवों! तुम्हें ऐसा कहना चाहिए था कि 'हम हैं, पद्मनाभ राजा नहीं, तो तुम्हारी जीत होती।' कृष्ण ने ऐसा ही कहकर युद्ध किया जिससे पद्मनाथ राजा बुरी तरह पराजित हुआ।72 युद्ध के नियम
ज्ञाताधर्मकथांग में युद्ध के नियमों का कोई उल्लेख नहीं मिलता है लेकिन जैन पुराणों में युद्ध के कुछ नियमों का वर्णन मिलता है। जैन पुराणों के अनुसार युद्ध दिन में हुआ करते थे परन्तु यदा-कदा रात्रि में भी शत्रु का आक्रमण हो जाता था, लेकिन यह अत्यधिक हेय माना गया था इसलिए 'रात्रियुद्ध' का निषेध किया गया था।73 हरिवंशपुराण में निद्रित एवं विघ्न बाधाओं से पीड़ित व्यक्ति, स्त्री तथा बच्चों को मारने का निषेद्ध किया गया है।74 शस्त्रास्त्र व अन्य सैन्य सामग्री
ज्ञाताधर्मकथांग में अग्रांकित शस्त्रास्त्रों का उल्लेख मिलता है- धनुष, छुरा”, प्रहरण", तलवार", बर्छियाँ, भाले"", मूसला०, खड्ग 1 | शस्त्रास्त्रों से रक्षा के लिए कवच धारण करने तथा भुजाओं पर पट्टा बांधे जाने का उल्लेख भी मिलता है।182
उपर्युक्त शस्त्रास्त्रों के अलावा युद्ध में प्रयुक्त होने वाले अन्य साजोसामान का उल्लेख भी ज्ञाताधर्मकथांग में मिलता है- कौमुदीभेरी183, दुंदुभि184, सामुदायिक भेरी185, सामरिक भेरी186 तथा पाञ्चजन्य शंख187 आदि।
___ इस प्रकार कहा जा सकता है कि तत्कालीन समय में राजा का राजनीति में सर्वोच्च स्थान था। वह विभिन्न राज्य कर्मचारियों के माध्यम से राज्य की आन्तरिक व्यवस्था का संचालन करता था और सीमा की रक्षा के लिए सुदृढ़ सैन्यव्यवस्था भी उसके जिम्मे थी। राजा वंश परम्परा से होने के कारण राजनैतिक अस्थिरता अपेक्षाकृत कम थी।न्यायपालिका और कार्यपालिका दोनों ही प्रत्यक्षअप्रत्यक्षरूप से राजा में ही निहित थी, अत: जनता राजा को देवतुल्य मानती थी।
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