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ज्ञाताधर्मकथांग में राजनैतिक स्थिति सजा दे सकता था। मल्ली के भग्न स्वर्ण-कुण्डल न जोड़ पाने के कारण कुंभराजा ने स्वर्णकार को देश निर्वासन की आज्ञा दी तथा मल्ली का चित्र देखकर कुपित हुए राजकुमार मल्लदिन ने चित्रकार के दाहिने हाथ के अंगूठे और उसके पास की अंगुली का छेदन करवाकर उसे देश से निर्वासित कर दिया।
पद का व्यामोह मानवीय संवेदना की बलि मांगने लगता है। इसी तरह का प्रसंग उपस्थित होता है ज्ञाताधर्मकथांग में- जब राजा कनकरथ अपनी प्रत्येक संतान का अंग छेदन मात्र इसलिए करवा देता है ताकि वह पद का अधिकारी न बन सके। राजा निर्वासन
ऋग्वेद और अथर्ववेद के कई सूक्तों में प्रजा के द्वारा राजा के निर्वाचन का उल्लेख है, लेकिन ज्ञाताधर्मकथांग में ऐसा उल्लेख नहीं मिलता है। राजा वंश परम्परा से बनते थे। बलराजा के बाद उसका पुत्र महाबल और महाबल के बाद उसका पुत्र बलभद्र वीतशोका नगरी के राजा बने।18 राज्याभिषेक
वैदिककाल में राजत्व के लिए राज्याभिषेक होना अनिवार्य था। अनभिषिक्त राजा निन्दनीय एवं अवैध समझा जाता था। ज्ञाताधर्मकथांग में मेघकुमार, मण्डुककुमार, कनकध्वज, पाण्डुसेन और कंडरीक आदि के राज्याभिषेक का उल्लेख मिलता है। राज्याभिषेक समारोह की भव्यता प्रतिपादित करते हुए बताया गया है कि मेघकुमार ने दीक्षा लेने का निश्चय किया, लेकिन माता-पिता के अत्यधिक आग्रह पर वह एक दिन के लिए राजसम्पदा का उपयोग करने के लिए तत्पर हो गया। अनेक गणमान्य, दंडनायक, कौटुम्बिक आदि पुरुषों से परिवृत्त हो उन्हें सोने-चांदी, मणि-मुक्ता आदि के आठ सौ चौसठ कलशों से स्नान करवाया गया। मृत्तिका, पुष्प, गंधमाल्य, औषधि, सरसों आदि से उन्हें परिपूर्ण करके सर्व समृद्धि, द्युति तथा सर्व सैन्य के साथ, दुंदुभि के निर्घोष की प्रतिध्वनि के शब्दों के साथ उच्चकोटि के राज्याभिषेक से अभिषिक्त किया।54 वैकल्पिक व्यवस्था
दीक्षित राजपुत्र कभी-कभी संयम धारण करने में अपने आपको असमर्थ पा दीक्षा त्यागकर लौट आता तो उसका ज्येष्ठ भ्राता उसे अपने आसन पर बिठा देता और स्वयं उसका स्थान ग्रहण करता यानी संयम अंगीकार कर लेता।
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