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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन गणिकाएँ भी मनोरंजन का साधन थी। सार्थवाह पुत्र गणिका देवदत्ता के साथ विपुल काम-भोग भोगते हैं। 68 विजयचोर369 और दासचेटक378 वेश्यागमन करते हैं। कौमुदी भेरी की आवाज सुनकर कृष्णवासुदेव के दरबार में हजारों गणिकाएँ उपस्थित हो जाती हैं।371 नृत्य, गीत व नाटक
ज्ञाताधर्मकथांग में जन्मोत्सव, विवाहोत्सव व राज्याभिषेक आदि के अवसर पर अप्सराओं के नृत्य तथा गंधर्वो के सुमधुर गीत आयोजित किए जाने का उल्लेख मिलता है।72 नंदमणिकार ने अपनी चित्रसभा में नृत्यकारों को लोगों के मनोरंजनार्थ वेतन पर रखा था।373
राजा श्रेणिक ने मेघकुमार के जन्मोत्सव एवं राज्याभिषेक के अवसर पर अनेक नाटक करवाए।74 नंदमणिकार की चित्रसभा में भी नाटक करने वाले रखे हुए थे। ऊँचे बाँस पर चढ़कर खेल दिखाने वाले नट भी लोगों का मनोरंजन किया करते थे।75 अन्य
उपर्युक्त मनोरंजक क्रीड़ाओं या साधनों के अलावा विडंवक (विदूषक), कथाकार, पलवक (तैराक), वाद्य बजाने वाले, तालियाँ पीटने वाले76, चारणमुनि व विद्याधर377 व रासलीला दिखाने वाले अथवा भांडों78 का उल्लेख भी ज्ञाताधर्मकथांग में मिलता है। अलौकिक क्रीड़ाएँ
उपर्युक्त लौकिक क्रीड़ाओं के अलावा एकाधिक अलौकिक क्रीड़ाओं का उल्लेख भी ज्ञाताधर्मकथांग में मिलता है। कच्छुल्ल नामक नारद आकाशगमन, संचरणी (चलने की), आवरणी (ढंकने की), अवतरणी (नीचे उतरने की), उत्पतनी (ऊँचे उड़ने की), श्लेषणी (चिपट जाने की)- ऐसी विद्या कि जिसके प्रभाव से सामने वाला आदमी अपने आसने हिलने-डूलने न पावे। (अर्द्धमागधी कोश भाग 4, पृ. 292), संक्रामणी (दूसरे के शरीर में प्रवेश करने की)- एक प्रकार की विद्या जिससे रूपान्तर किया जा सके (अर्द्धमागधी कोश भाग 4, पृ. 577), अभियोगिनी (सोना-चांदी आदि बनाने की), प्रज्ञप्ति (परोक्ष वृत्तान्त को बतला देने की), गमनी (दुर्गम स्थान में भी जा सकने की) और स्तंभिनी (स्तब्ध कर देने की)- स्तंभन विद्या (अर्द्धमागधी कोश भाग 3, पृ. 92) आदि बहुत से अलौकिक विद्याओं का जानका था। पूर्वसंगतिक देव अवस्वापिनी
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