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________________ आमुख • vii भी मानव की चित्तभूमि के सहज स्वभाव की विविधता का प्रमाण है तथा साधनों और मार्गों की बहुलता की अनिवार्यता तथा अन्तर्निहित अनिश्चितता की ओर स्पष्ट रूप से इंगित करता है। साथ-ही-साथ, यह भी स्पष्ट होता है कि पंथों की पवित्र आचार-विचारगंगा ने ही शायद लहूलुहान इतिहास के बीच भी आम भारतीय को बर्बर होने से सदियों तक बचाए रखा। आज की हिंसा के तांडव के परिप्रेक्ष्य में अहिंसा के आचार-विचार का ऐसा अद्भुत इतिहास और इतना व्यापक प्रभाव हमें क्या सिखाता है यह भी अधिक स्पष्ट, मुखर और मूल्यवान हो जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि वैदिक, जैन और बुद्ध की परम्पराओं में आचार-विचार की कथनी-करनी के बीच का विलुप्त होता अन्तराल ही जनसम्प्रेषण की भट्टी में आणविक ऊर्जा का-सा काम करता है जिसके प्रभाव से मानव-चित्त पर अद्भुत ऐतिहासिक छापे अत्यन्त सघन, प्रबल, प्रखर, मुखर, स्थायी या कालजयी बन जाते हैं। ऐसी जीवन्त सम्प्रेषणीयता के आलोक में, यह भी समझने योग्य है कि निर्ग्रन्थ तथा स्मृति के मौन या मुखर युग में मानव विश्वास सदियों तक इतना सघन-सबल क्यों था तथा आज के लिखावट के युग में सम्प्रेषण की अक्षरीय निश्चितता तथा मशीनी विशद बारम्बारता के बावजूद विश्वास के हनन का संकट सभी देशों में, चारों ओर, दिन-रात, प्रति पल इतना क्यों गहरा रहा है। भूमित्र देव
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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