SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 38 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति 32. इण्डियन एन्टीक्वेरी, पृ० 282 वेबर इसका समय चौथी शताब्दी ई० मानते हैं। एपिग्राफिका इण्डिका, जिल्द 16, पृ० 17 के अनुसार वालभी वाचना का समय 470 ई० तथा माथुरी वाचना का समय 501 ई० है तथा वलभी की द्वितीय वाचना आरम्भिक छठी शताब्दी में बैठती है। द्र० हिस्ट्री आफ जैन मोनेक्ज्मि , पृ० 20-221 33. द्र० सैक्रेड बुक्स आफ दी ईस्ट, जि० 22, पृ० 37-391 34. हर्मन जैकोबी, सैक्रेड बुक्स आफ दी ईस्ट, जिल्द 22, प्रस्तावना, पृ० 37-391 35. चुल्लवग्ग अनु० राहुल सांकृत्यायन अ० 11ए पृ० 5411 36. भगवान बुद्ध के प्रिय शिष्य आनन्द को भगवान के सब सूत्र कण्ठस्थ थे। उनकी स्मृति प्रबल थी इसी कारण से प्रथम संगीति में आनन्द ने धर्म का संगायन किया। इसलिए सूत्र इस वाक्य से आरम्भ होते हैं- ‘एवं मे सुतं' ऐसा मैने सुना। आचार्य नरेन्द्रदेव, बौद्ध धर्म एवं दर्शन, पृ० 351 बौद्ध संगीतियों पर विस्तार के लिए द्र० अर्लीबुद्धिस्ट मोनेकिज्म, पृ० 11, अर्ली मोनेस्टिक बुद्धिज्म, पृ० 9, दी एज आफ विनय. पृ० 8-11, बौद्धधर्म के विकास का इतिहास, पृ० 156-157। 37 दसरी संगीति के समय बौद्ध संघ में भेद हो गया जिसके परिणामस्वरूप बद्ध शासन स्थविर और महासांघिक सम्प्रदायों में विभक्त हो गया। चुल्लवग्ग के अनुसार निर्वाण के सौ वर्ष के पश्चात् संघ में भेद हुआ। 38. ओल्डनबर्ग, विनयपिटक, जिल्द 1, पृ० 48 प्रस्तावना, पृ० 31-32| ओल्डनबर्ग का मत है कि द्वितीय संगीति में पुस्तकों के संकलन के लिए नहीं हुई थी और इसी प्रकार का मत एस० दत्ता का भी है। इनके मत में यह संगीति केवल विवादाधिकारण मात्र थी और जिसने की समस्त बुद्ध संघ में उत्तेजना फैला दी। अत: उसमें विनय का संकलन हो पाया होगा, दुष्कर लगता है। द्र० एस० दत्त, बुद्ध एण्ड फाइव आफ्टर सेन्चुरीज, पृ० 170, बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, पृ० 1701 39. दी एज आफ विनय, पृ० 17-18। 40. राहुल सांकृत्यायन, बुद्धचर्या, पृ० 548। 41. दी एज आफ विनय, पृ० 20। 42. हिस्ट्री आफ इण्डियन लिटरेचर, भाग-2, पृ० 4261 43. प्रज्ञापना, पद 11 44. तदैव, 45. दशवैकालिक, हरिभद्रीया वृत्ति पत्र 251 46. भारतीय लिपि माला, पृ० 41 47. अनुयोगद्वारसूत्र, श्रुत अधिकार 371 48. मुनि नथमल, जैन दर्शन मनन और मीमांसा, पृ० 86-871 49. जतियमेत्ता वारा, उ मुंचई बंघई व जति वारा। ___ जतिअक्खराणि लिहति व तति जं च आवज्जे।। बृहत्कल्प भाष्य, 3,3 गाथा 383), निशीथभाष्य, 12 गाथा 4008। 50. हिस्ट्री ऑव इण्डियन लिटरेचर, भाग 2, पृ० 4261 51. उत्तराध्ययन सूत्र (जे०ई० कान्टियर), पृ० 31-कान्टियर का निष्कर्ष है कि प्रमुख पवित्र कृतियां आज भी जिस रूप में प्राप्य हैं उन मूल आगमों की प्रतिनिधि हैं जो कि पाटलिपुत्र वाचना में स्थायी हुए थे। 52. द्र० कैलाश चन्द्र शास्त्री, जैन साहित्य का इतिहास, भाग-1, पृ० 2।
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy