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________________ 34 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति किया है। वे पांच दृष्टान्त हैं- मेढा, काकिनी, आम्रफल, व्यापार और समुद्र । आठवें, कापिलीय नामक अध्ययन में कपिल मुनि ने केवल ज्ञानी होकर चोरों को समझाने के लिए जो उपदेश दिया उसका संकलन है। नवें, नमि- प्रव्रज्या नामक अध्ययन में नमि नामक प्रत्येक बुद्ध राजा की दीक्षा का वर्णन है। मिथिला का राजा नमि काम भोगों से विरक्त होकर जिन दीक्षा लेता है और इन्द्र ब्राह्मण का रूप बनाकर उससे प्रश्न करता है । अन्त में, राजा के वैराग्यपूर्ण उत्तरों से सन्तुष्ट होकर इन्द्र नमस्कार करके चला जाता है। मिथिला का राजा नमि ऐतिहासिक व्यक्ति है। यह पार्श्वनाथ का समकालीन था । दसवें, द्रुमपत्रक नामक अध्ययन में महावीर स्वामी गौतम गणधर से कहते हैं कि जैसे वृक्ष का पत्ता पीला होकर झड़ जाता है वैसा ही मानव जीवन है । अत: गौतम एक क्षण के लिए भी प्रमाद मत कर। ग्यारहवें, बहुश्रुत नामक अध्ययन के आरम्भिक पद में कहा गया है कि संयोग से मुक्त अनगार भिक्षु के आचार का कथन करूंगा उसे सुनो।' बारहबें, हरिकेशीय नामक अध्ययन में हरिकेशी मुनि की कथा है। हरिकेशी जन्म से चाण्डाल था। एक दिन भिक्षा के लिए वह एक यज्ञमण्डप में चला गया। वहां ब्राह्मणों से वार्तालाप हुआ। ब्राह्मणों ने उसे वहां से चले जाने के लिए कहा। वह नहीं गया तो कुछ तरुण विद्यार्थियों ने उसको मारा। तब यक्षों ने उन कुमारों को पीटा। हरिकेशी से क्षमायाचना करने पर छोड़ा। चित्र-सम्भूतीय नामक तेरहवें अध्ययन में चित्र और सम्भूति नामक दो मुनियों का वृत्तान्त है। इषुकारीय नामक चौदहवें, अध्ययन में बतलाया गया है कि एक ही विमान से च्युत होकर छ: जीवों ने अपने-अपने कर्म के अनुसार इषुकार नामक नगर में जन्म लिया और जिनेन्द्र के मार्ग को अपनाया। सभिक्षु नामक पन्द्रहवें अध्ययन में भिक्षु का स्वरूप बतलाया है। प्रत्येक पद्य के अन्त में 'स भिक्खु' (वह भिक्षु है) पद आता है। इसी से इस अध्ययन का नाम भिक्षु है। सोलहवें, ब्रह्मचर्य समाधि नामक अध्ययन में ब्रह्मचर्य के दस समाधि स्थानों का कथन है। तत्पश्चात् श्लोकों के द्वारा उन्हीं का प्रतिपादन है। सत्रहवें पापश्रमण नामक अध्ययन में पापाचारी श्रमणों का स्वरूप बतलाया है। अट्ठारहवें अध्ययन में संयतीय अध्ययन में संजय राजा की कथा है। उन्नीसवें, मृगापुत्रीय अध्ययन में मृगापुत्र की कथा है। बीसवें, महानिर्ग्रन्थीय अध्ययन में एक मुनि की कथा है। इक्कीसवें, समुद्रपालीय अध्ययन में समुद्रपाल की कथा है। बाईसवें, रथनेमीय अध्ययन में रथनेमि की कथा है। रथनेमि नेमिनाथ का
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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