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________________ जैन आगम साहित्य : ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन •9 भगवान के उपदेशों को स्मरण रखकर तत्काल अंगों में ग्रन्थित करना था । ग्रन्थित करने के पश्चात् किसी योग्य शिष्य को सौंप कर उसकी परिपाटी को सुस्थिर रखना भी एक मुख्य कार्य था । इसी परिपाटी के अनुसार द्वादशांग श्रुत अविकल रूप में अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु को प्राप्त हुआ। आगम लेखन की परम्परा डॉ० विन्टरनित्स का कथन है कि द्वादशांगरूप आगम साहित्य से इतर आगमिक जैन साहित्य की रचना श्वेताम्बरीय आगम संकलना से बहुत पहले ही आरम्भ हो गयी थी। 42 पुस्तक लेखन की परम्परा सम्भवत: देवर्द्धि से बहुत समय पूर्व आरम्भ हो गयी थी । प्रज्ञापना में 'पोत्थाय' शब्द आता है जिसका अर्थ होता है लिपिकार | इसी सूत्र में बताया गया है कि अर्द्धमागधी भाषा और वालभी लिपि का प्रयोग करने वाले भाषार्य होते हैं। 44 पांच प्रकार की पुस्तकें बतलायी गयी हैं1 गण्डी, 2 कच्छवी, 3 सृष्टि, 4 सम्पुट फलक एवं 5 सर्पाटिका । हरिभद्रसूरि ने भी दशवैकालिक टीका में प्राचीन आचार्यों का उल्लेख करते हुए उन्हीं पुस्तकों का उल्लेख किया है। 45 निशीथचूर्णि में भी इसका उल्लेख है । अनुयोगद्वार का 'पोत्थकर्म' शब्द भी लिपि की प्राचीनता का एक प्रमाण है। टीकाकार ने पुस्तक का अर्थ ताड़ पत्र अथवा सम्पुटक पत्र, संचय और कर्म का अर्थ उसमें वर्तिका आदि से लिखना किया है। इसी सूत्र में आये हुए 'पोत्थकार' शब्द का अर्थ टीकाकार ने पुस्तक के द्वारा जीविका चलाने वाला किया है। वीर निर्वाण की दूसरी शताब्दी में आक्रान्ता सम्राट सिकन्दर के सेनापति निआर्कस ने लिखा है कि भारतवासी लोग कागज बनाते थे । " वर्तमान में लिखित ग्रन्थों में ईस्वी सम्वत् पांचवीं में लिखे हुए पत्र 'पतय पोत्थय लिहिअं' 47 मिलते हैं। किन्तु अति प्राचीन काल में इसके लिए कौन से साधन प्रयुक्त होते थे, जानना कठिन है। भारतीय वाङ्मय का भाग्य लम्बे समय तक कण्ठस्थ परम्परा में ही सुरक्षित रहा। तीनों परम्पराओं के शिष्य उत्तराधिकार के रूप में अपने आचार्यों द्वारा श्रुत ज्ञान स्मृति के रूप में पाते थे। प्रतिक्रिया आगमों के लिपिबद्ध होने के उपरान्त भी एक विचारधारा ऐसी रही कि साधु पुस्तक लिख नहीं सकते थे और अपने साथ भी नहीं रख सकते थे। पुस्तक लिखने और रखने में अनेक प्रकार के दोष बताये जाते थे 48 : 1. अक्षर लिखने में कुन्थु आदि त्रस जीवों की हिंसा होती है। इसलिए पुस्तक
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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