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________________ आर्थिक दशा एवं अर्थव्यवस्था • 309 जैकोबी हिरण्य का अर्थ सोने चांदी की धातु से तथा सुवर्ण गहने या सिक्कों से लगाते हैं। -तुल० उपासकदशांग, वैद्य 1, पृ० 6। 235. निशीथसूत्र, 5/351 236. उत्तराध्ययन, 20/42 कार्षापण को कूट भी कहा गया है। यह राजा बिम्बसार के समय से राजगृह में प्रचलित था। अपने संघ के नियम बनाते समय बुद्ध ने इसे मानक रूप में स्वीकार किया था। यह सोने चांदी और ताम्बे का होता था। द्र० बौद्धग्रन्थ सामन्तपासादिका, 2, पृ० 2971 237. उत्तराध्ययन, 8/17। 238. सूत्रकृतांग एस०बी०ई०, 2/2/62 पृ० 374 रूपक रूपये के लिए प्रयुक्त होता था। 239. उत्तराध्ययन, 8/171 240. यह यूनान की मुद्रा थी जिसे यूनानी भाषा में द्रख्म कहा जाता था। उल्लेखनीय है कि यूनानियों का भारत के कुछ प्रदेशों पर ई० पू० दो सौ से लेकर दो सौ ई० तक शासन रहा था। 241. ईस्वी सन् की प्रथम शताब्दी में कुषाण काल में प्रचलित रोम के डिरेनियस नामक सिक्के से यह शब्द लिया गया प्रतीत होता है। कल्पसूत्र एस० बी०ई०, पृ० 233। 4/36 की व्याख्या करते हुए जैकोबी अनुमान लगाते हैं कि दीनार शब्द का प्रयोग यूनानी शब्द के अनुकरण पर ही है जो यह इंगित करता है कि कल्पसूत्र के इस भाग का संकलन बहुत बाद में किया गया था। 242. ईस्वी सन् की प्रथम शताब्दी में कुषाण काल में प्रचलित रोम के डिरेनियस नामक सिक्के से यह शब्द लिया गया प्रतीत होता है। कल्पसूत्र एस०बी०ई०, पृ० 2334/361 243. उत्तराध्ययन, 7/11 यह एक प्रकार का छोटा सिक्का था जिसे रूपये का आठवां भाग कहते हैं। 244. वही, 7/141 245. आयारो, 2/181 246. जलपोत पर व्यापारी-उत्तराध्ययन, 14/37। 247. उत्तराध्ययन, 6/5,34/16: सूत्रकृतांग, 2/2/26, 1/3/2। 248. उत्तराध्ययन, 27/4: 10/20: सूत्रकृतांग, 2/2/70: कल्पसूत्र, पृ० 2351 249. उत्तराध्ययन, 7/71 250. वही, 7/11 251. सूत्रकृतांग, 2/2/451 252. उत्तराध्ययन, 34/16: आयारो, 9/2/71 253. यह सिन्ध के जानवर थे जिनकी खाल से फर बनता था-द्र० आचारांग एस०बी०ई०, 2/ 5/1/51 254. वही, 1/1/7/51 255. उत्तराध्ययन, 6/5, 18/2: सूत्रकृतांग, 2/2/261 256. वही, 6/5: 18/2 : वही, 2/2/101 . 257. वही, 13/6 : वही, 2/2/10। 258. वही, 32/13: वही, 2/6/431 259. उत्तराध्ययन, 36/1081 260. वही. 10/16/18,20-21: 19/63:32/891
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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