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________________ 86. प्रवचन 87. प्रवर्तिनी 88. प्रवृत्ति 89. प्रव्रज्या 90. प्रश्रवण 91: पाद प्रमार्जन 92. पादोपगमन 93. पारांचित अथवा पारांसिय 94. पासण्ड 95. प्राणातिपात 96. प्रायोग्य-प्रायोपगमन 97. पृच्छना 98. पुद्गल 99. पुस्तकारूढ़ 100. पुलाक 101. पंचमुष्टिलोय 102. बकुश 103. बहुश्रुत 104. भक्तपरिज्ञा 105. महामह पारिभाषिक शब्दावली • xxix : त्रिरत्न, सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान तथा सम्यक् चरित्र । : भिक्षुणी संघ की प्रमुख । : लौकिक जीवन को काम्य मानने की भावना । : संघ प्रवेश अथवा श्रमण जीवन को संकल्पूर्वक अंगीकार करना तथा गृहस्थ जीवन से संन्यास लेना । : प्राकृतिक विसर्जन । : पांव धोना । : अपने पांवों से चलते हुए, संघ से निकलकर सम्यक् स्थान पर शरीर त्यागना । : संघ विरोधी गतिविधि करने पर प्रायश्चित जिसमें संघ निष्कासन या भर्त्सना के पश्चात् अवहेलनापूर्वक पुनर्दीक्षा। : धर्म सम्प्रदाय । : अहिंसा । : न श्रमण स्वयं की ओषधि आदि से परिचर्या करे, न दूसरों से कराए, कष्ट सहन करते हुए समाधि मरण ले। : प्रश्न पूछना। : भौतिक द्रव्य या पृथ्वी तत्व, जल तत्व, अग्नि तत्व तथा वायु तत्व जो इन्द्रियों द्वारा प्रत्यक्ष होते हैं। : पुस्तक में निबद्ध हो जाना । : निस्सार धान्यकणों की भांति जिसका चरित्र भी स्वत्वहीन हो गया हो । : जैन परम्परानुसार प्रव्रज्या के समय प्रवेशार्थी को संघ के समक्ष स्वयं अपने हाथ से केश उखाड़ कर संयम प्रमाणित करना पड़ता था । : शरीर विभूषा से श्रमणाचार को दोष लगाने वाला निर्ग्रन्थ । : प्रचलित सिद्धान्त । : भोजन त्याग कर प्रतिज्ञापूर्वक संन्यासमरण । : महोत्सव ।
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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