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________________ 272 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति गायों को दान देने वाला हो।125 यह अपेक्षा इस बात की ओर इंगित करती है कि राजा को धर्म द्वारा मर्यादित होना चाहिए और लौकिक धार्मिक परम्पराओं का अनुपालक होना चाहिए। राजा को एकछत्र शासक बनने का प्रयास करना चाहिए।।26 इतना शक्तिशाली राजा राजधर्म के प्रति निरपेक्ष भाव रखे तथा मुनि धर्म के पालन का प्रयास करे।।27 राजा को अपनी सैन्य व्यवस्था सुदृढ़ रखनी चाहिए। सेना रहित राजा असहाय होता है।128 राजा शरीर सौष्ठव से युक्त बलवान होना चाहिए। बल और कान्ति के लिए राजा प्रतिदिन व्यायाम करे।।29 राजा का यह भी कर्तव्य है कि वह अपने राज्य के सारे राजनैतिक व सैनिक विप्लव दबा दे।।30 राज्य उत्तराधिकारी का जन्मोत्सव राज्य के उत्तराधिकारी का जन्म अत्यन्त हर्ष का विषय माना जाता था। राज्य की कुल परम्परा के अधिकारी के जन्म के अवसर पर राजकीय उत्सव मनाने की परम्परा थी।।3। यह उत्सव कई दिनों तक मनाया जाता था। पहले दिन जन्म का उत्सव होता। तीसरे दिन बालक को सूर्य और चन्द्र के दर्शन कराये जाने का उत्सव मनाया जाता था। छठे दिन छठी का रात्रि जागरण होता था। ग्यारहवें दिन श्रावक स्नान का उत्सव किया जाता था। बारहवें दिन भोजन, पेय, मसाले, मिष्टान्न के विशाल आयोजन के साथ मित्र व सम्बन्धियों को आमन्त्रित किया जाता था। समस्त सप्रवर व सपिण्ड सम्बन्धी निमन्त्रित किये जाते थे। इसके पश्चात पिता स्नान कर, कुलदेवता को प्रसाद अर्पित कर, राजसी वस्त्र धारण कर, मूल्यवान आभरण पहनकर, मुख शुद्धि कर सभागृह में जाता था अतिथियों को पुष्पहार तथा मूल्यवान वस्त्र उपहार देता था। तब बालक का नामकरण व जाति संस्कार किया जाता था। 32 राजप्रासाद राजा राजभवनों या राजप्रासादों में निवास करते थे। देवों के निवास स्थान को प्रासाद और राजाओं के निवास स्थान को भवन कहा जाता था।।33 प्रासाद ऊंचे होते थे, उनकी ऊंचाई चौड़ाई की अपेक्षा दुगुनी और भवन की ऊंचाई चौड़ाई की अपेक्षा कम होती थी। भवन ईट के बने होते थे।।34 जैनसूत्रों में आठ तल वाले प्रासादों का उल्लेख है : यह प्रासाद सुन्दर शिखरों से युक्त तथा ध्वजा, पताका, छत्र और मालाओं से सुशोभित रहते थे। इनके तलों में विविध प्रकार के अमूल्य रत्न जड़े रहते थे।।35 इन भवनों में ऊंचे-ऊंचे गवाक्ष होते थे, जिनसे नगर के दो
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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