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________________ अध्याय 6 राजनीतिक एवं ऐतिहासिक विवरण प्राचीन भारत में राजनीति शास्त्र को राज धर्म, राज्य शास्त्र, दण्ड नीति आदि नामों से सम्बोधित किया जाता था। इनमें से राज धर्म व राज्य शास्त्र नाम इसलिए दिये गये हैं कि उस समय नृपतन्त्र या राजतन्त्र सामान्यतः प्रचलित था व इसलिए शासन शास्त्र को राज धर्म या राज्य शास्त्र का नाम देना स्वाभाविक था। दण्ड नीति यह नामाभिधान भी समझने में कठिन नहीं है। अनेक राजनीति शास्त्री भी राजसत्ता का अन्तिम आधार दण्ड या बलप्रयोग समझते थे। यदि राज्यसत्ता अपराधियों को दण्ड न देगी तो समाज में मात्स्य न्याय या अराजकता शुरू हो जायेगी, दण्ड के भय से ही लोग न्याय पथ का अनुसरण करते हैं। जब सब लोग सोते हैं तब टण्ड जाग कर उनका रक्षण करता है। दण्ड ही धर्म है ऐसी भारतीय शास्त्रों की धारणा थी।' पालि ग्रन्थों में दण्ड शब्द का प्रयोग ठकम्मठ शब्द से हुआ है। जैनसूत्रों में भी यह शब्द इसी अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। सूत्रकृतांग में पाप के तेरह कारणों में से प्रथम पांच का अनुवाद जैकोबी ने दण्ड समादान के रूप में किया है। यहां दण्ड तीन प्रकार के बताये गये हैं-देह दण्ड, वाक दण्ड तथा मनोदण्ड। किन्तु आवश्यक यह है कि दंड का प्रयोग सावधानी से किया जाये। सामान्यत: हिन्दू राज्य शास्त्र की यही भावना है। कौटिल्य के अनुसार यदि राजा कड़ा दण्ड दे तो लोग उससे द्वेष करेंगे। यदि बहुत कम दण्ड दे तो वह उसका आदर नहीं करेंगे। यदि वह उचित मात्रा में दिया जाये तो जनता सुखी रहेगी। समाज की प्रगति होगी व राजा का आसन स्थिर रहेगा। कौटिल्य के अनुसार यह धारणा उचित नहीं है कि दण्ड से लोगों के मन में
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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