SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 254 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति (2) यदि त्रिशला और सिद्धार्थ के पुत्र थे तो त्रिशला ही के गर्भ में आये थे। द्र० डा० गोकुलचन्द जैन, "तीर्थंकर महावीर का जीवन और विरासत", तुलसीप्रज्ञा, अप्रैल-जून 1975, पृ० 31-32। इसके अतिरिक्त भी एक सम्भावना है कि ऋषभदत्त एक कल्पित नाम हो और महावीर की माता देवनन्दा तथा पिता सिद्धार्थ ही हों किन्तु माता के क्षत्राणी न होने से उसे नन्दिवर्धन की अपेक्षादाय कम मिलने की सम्भावना देखते हुए स्वयं सिद्धार्थ ने उसे त्रिशला का पुत्र घोषित करा दिया हो । 55. बुद्धिस्ट इण्डिया, पृ० 31,37, 381 साहित्य में ब्राह्मणों को हीन जच्चको कहा गया है। उदाहरण जातक 5/2571 56. दी एज आफ विनय, पृ० 166-671 57. पाचित्तिय, पृ० 2131 58. मनु, 8 / 2/81 59. द्र० जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ० 2281 60. एक बार में सौ व्यक्तियों का संहार करने वाला यन्त्र । 61. उत्तराध्ययन एस० बी०ई०, जि० 45, पृ० 371 62. वृहत्संहिता, 53/36 में उल्लिखित तथाकथित सर्वश्रेष्ठ गृह । 63. उत्तराध्ययन एस० बी० ईग०, जि० 45, पृ० 38 1 64. तु० प्रजानांरक्षणं दानमिज्या अध्ययनमेव च । विषयेषवप्रसक्तिश्च क्षत्रियस्य समासक्तः।1 मनुस्मृति, 1/89, प्रजा की रक्षा करना, दान देना, यज्ञ करना, पढना, विषय में आसक्ति नहीं रखना, संक्षेप में इन कर्मों को क्षत्रियों के लिए बताया गया है। 65. उत्तरज्झयाणि सानुवाद, 9/46, पृ० 1161 66. महावग्ग, अध्याय 9, ओल्डनबर्ग की मान्यता थी कि गृहपति वैश्य का पर्याय माना जा सकता है। द्र० हिस्ट्री आफ दी इण्डियन कास्ट सिस्टम अनुवाद एस० जी० चकलादार: इण्डियन एन्टीक्वेरी जि० XLIX, पृ० 1920, पृ० 228 तथा एनल्स आफ भण्डारकर ओरिएन्टल रिसर्च इन्सटीट्यूट, पूना 1934, पृ० 681 67. जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ० 229 । 68. बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, पृ० 21। 69. दी एज आफ विनय, पृ० 1671 70. रतिलाल मेहता, पूर्वोक्त, पृ० 2211 71. उत्तराध्ययन टीका शान्तिसूरि, बम्बई 1902, जि० 2, पृ० 45। 72. आवश्यक चूर्णि, पृ० 441 73. गृहपतियों को इभ्य, श्रेष्ठी और कौटुम्बिक नाम से भी कहा गया है। इन्हें राजपरिवार का अंग माना जाता था। औपपातिक सूत्र, 27, फिक, पूर्वोक्त पृ० 2561 74. वही, पृ० 297 75. आवश्यक चूर्णि, पृ० 197-98 । 76. मलालसेकर, डिक्शनरी आफ पाली प्रोपर नेम्स, जि० 291 77. सम्पूर्ण जैन आगम उदाहरण के लिए आचारांग, सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययन तथा कल्पसूत्र आदि इस बात के उत्कृष्ट प्रमाण हैं कि श्रमणों को भोजन, वस्त्र तथा आवास किस प्रकार गृहपतियों से प्राप्त होता था। इस विषय में श्रमण तथा श्रमणियों की आचार संहिता मन्थन योग्य है। go बोद्धग्रन्थों में उल्लिखित अंग के मेण्डक, कौशल के अनाथपिण्डक तथा कोशाम्बी के घोषक नामक धनाढ्य श्रेष्ठि जिन्होंने संघ को आराम, विहार तथा स्वर्ण
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy