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________________ समाज दर्शन एवं समाज व्यवस्था • 239 अनुसार ब्राह्मण क्षत्रिय वर्ग संघर्ष की ऐतिहासिकता स्वीकार करने के लिए कोई वास्तविक आधार नहीं मिलता। क्षत्रियों ने नवीन आध्यात्मिक और बौद्धिक आन्दोलनों में महत्वपूर्ण भाग लिया किन्तु इससे यह अनुमान नहीं किया जा सकता कि आर्थिक लाभ, सामाजिक प्रतिष्ठा अथवा राजकीय शक्ति के लिए ब्राह्मणों अथवा क्षत्रियों में जातिबद्ध अथवा वर्गश: संघर्ष था। अवश्य ही नैष्कर्म्य परक आध्यात्मविद्या पौरोहित्य की विरोधिनी थी, पर इसके नेता वास्तव में श्रमण थे जिनकी आध्यात्मिक सांस्कृतिक परम्परा में इस समय क्षत्रिय और ब्राह्मण दोनों ही थे। बुद्ध और महावीर जन्मना क्षत्रिय थे, किन्तु जाति के परित्यागपूर्वक ही वह श्रमण बन सके। दूसरी ओर उपनिषदों में और गीता में संकेतिक विशुद्ध क्षत्रिय विद्या कर्म का प्रत्याख्यान नहीं करती। उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर केवल इतना ही स्वीकार किया जा सकता है कि पुरोहितों के कर्मकाण्ड का इस युग में अनेक दिशाओं से विरोध हुआ, जिसका श्रमणों, प्रबुद्ध क्षत्रियों और आध्यात्मवादी ब्राह्मणों ने नेतृत्व किया। विश्वामित्र और वसिष्ठ के संघर्ष की कथा इस प्रसंग में नि:सार है। इसी प्रकार महाभारत में उल्लिखित जामदग्नय के लिए हुए क्षत्रिय संहार की कथा को भी भार्गवों की अतिरंजित कल्पना ही मानना चाहिए।26 जैनसूत्रों में ब्राह्मण के लिए धिज्जाई अर्थात् धिक् जाति शब्द का निन्दापरक प्रयोग किया गया है। बौद्धग्रन्थों में उन्हें हीन जच्चको कहा गया है।28 बौद्धग्रन्थों में विशेषकर जातकों में ब्राह्मणों को हीनकुल में उद्भूत कहना बहुत अप्रत्याशित तथा विस्मयकारी है। विशेष रूप से उनके लिए जो ब्राह्मण परम्परा से परिचित हैं तथा जिन्हें महाभारत और मनुस्मृति का घनिष्ठ परिचय है। राइसडेविडस की इस विषय में यह मान्यता है कि यह अलंकार ब्राह्मणों को क्षत्रियों की अपेक्षा से नहीं अपित राजा तथा सामन्तों की तुलना में दिया गया है। इस दष्टि से ब्राह्मण उनकी तुलना में निम्न कुलोत्पन्न थे। जैनसूत्रों में ब्राह्मणों के कर्मकाण्डीय यज्ञों की आलोचना की गयी है। इन सूत्रों का कथन है कि सिर मुंडाने से कोई श्रमण नहीं होता, ओंकार जाप करने से कोई ब्राह्मण नहीं होता, जंगल में रहने से तथा कुशचीवर धारण करने से कोई तापस नहीं होता किन्तु हर कोई समता से श्रमण, ब्रह्मचर्य से ब्राह्मण, ज्ञान से मुनि और तप से तपस्वी होता है। यही कारण है कि जन्म से क्षत्रिय वंश में जन्म लेने पर भी जैन साक्ष्यों में महावीर को कर्म से ब्राह्मण कहा गया है। उन्हें माहणेण मतिमाण माहण अर्थात् ब्राह्मण कहा गया है क्योंकि महावीर की साधना, माहण हिंसा नहीं करने की साधना थी। यद्यपि सैद्धान्तिक दृष्टि से जैनों ने वर्ण और जाति की जी भर कर निन्दा की थी लेकिन फिर भी व्यवहार में वह जाति-पांति के बन्धनों
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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