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230 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति 162. (क) भगवती, 2/1 सू० 90 वृत्ति पत्र 211, (ख) उत्तराध्ययन नियुक्ति, गाथा 2241 163. वही। 164. वही, गाथा 2251 165. (क) भगवती, 2/1 सू० 90 वृत्ति, (ख) समवायांग, समवाय 17 वृत्ति पत्र 35, (ग)
उत्तराध्ययन नियुक्ति, गाथा 225 वृत्ति, पत्र 2351 166. विजयोदयावृत्ति, पत्र 113 द्र० उत्तरज्झयणं सानु०, पृ० 62। 167. गोम्मटसार कर्मकाण्ड, गाथा 61, द्र० वही। 168. भगवती, 2/1, सू० 90 वृत्ति पत्र 2121 169. यथा नदी नदा: सर्वेसागरे यान्ति संस्थितिम्।
तेथवाश्रमिण: सर्वेगृहस्थे यान्ति संस्थितिम्।।
-मनुस्मृति चौखम्बा संस्कृत ग्रन्थमाला 6/901 170. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, पृ० 33। 171. वही, पृ० 351 172. द्र० जैन इथिक्स, पृ० 102। 173. उपासक दशांग, राजकोट 1961, पृ० 201-2441 174. रत्नकरण्ड श्रावकाचार.प.51-661 175. वही, पृ० 211 176. छान्दोग्य उपनिषद्, 3/17/4: तैत्तिरीय उपनिषद्, 1-91
द्र० जैन इथिक्स पृ० 103। 177. आचारांगसूत्र में और भी तीन व्रतों का उल्लेख है। एस०बी०ई० जि० 22, पृ० 63। 178. बौधायन 2/10/18 एस०बी०ई० जि० 22 भूमिका, पृ० 23 सं उद्धृत। 179. योग सूत्र, 2/301 180. स्थानांगसूत्र 4/1/266 : द्र० जैन इथिक्स, पृ० 103। 181. उत्तराध्ययन, 23/26-271 182. मूलाचार, 1/301 183. मनुस्मृति, 5/45-551 184. वही, 5/561 185. जीवो जीवस्य जीवनम्। श्रीमदभागवतपुराण, गीताप्रेस वि० सं० 2010 1/14/461 186. मुनि नथमल, अहिंसा तत्व दर्शन, चुरु 1960, पृ० 85-861 187. अमितगति श्रावकाचार, 6/6-71 188. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 531 189. अमितगति श्रावकाचार, 6/8। 190. "सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म"-तैत्तिरीयोपनिषद. 2/1/1: तथा ऋतंच सत्यंचाभीद्वस्तपसो
ध्यजायत-ऋग्वेद, 10/190/11 191. द्र० दिवाकर पाठक : भारतीय नीतिशास्त्र, पृ० 119। 192. मनुस्मृति, 4/1381 193. द्र० भारतीय नीतिशास्त्र, पृ० 1201 194. जैन दार्शनिक इस बात को भली भांति जानते थे कि अपने दैनिक जीवन में श्रावक कटु
वचनों का पूर्ण त्याग नहीं कर सकता। विशेषत: अपने घर में, धन्धे में, और जीवन तथा सुरक्षा के मामले में। अत: इन मामलों में अपवाद बनाये गये थे और अन्य मामलों में