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________________ 188 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति श्रमण के दस उत्तम धर्म या गुण मुनि को दस उत्तम गुणों का पोषण करना चाहिए—(1) शान्ति, (2) मुक्तिनिर्लोभता या आसक्ति, (3) मार्दव, (4) आर्जव, (5) लाघव, (6) सत्य, (7) संयम, (8) तप, (9) त्याग-अपने साम्भोगिक साधुओं को भक्त आदि का दान देना एवं (10) ब्रह्मचर्य। इन दस लक्षण धर्मों का उद्देश्य आध्यात्मिक विकास है। यद्यपि इस सूची में कुछ उन गुणों की भी आवृत्ति हुई है जो महाव्रत अथवा समिति गुप्ति के अन्तर्गत हैं, यद्यपि तत्वार्थसूत्र की राजवार्तिक विभाषा में इनमें विभेद करने का प्रयास किया गया है।60 किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि हिन्दू धर्म के दस लक्षण धर्मों के अनुकरण के आधार पर जैन चिन्तकों ने जैन धर्म को भी दस उत्तम धर्मों पर आधारित कर दिया है। मुनि की बारह प्रतिमाएं यह बारह प्रतिमाएं वह बारह प्रतिमान हैं जिनके द्वारा मुनि आध्यात्मिक उत्कर्ष को प्राप्त करता है।62 यह हैं प्रथम प्रतिमाधारी मुनि को एक दत्ति पानी और एक दत्ति अन लेना कल्पता है। साधु के पात्र में दाता द्वारा दिये जाने वाले अन्न और जल की धारा जब तक अखण्ड बनी रहे वही दत्ति है। धारा खण्डित होने पर दत्ति भी समाप्त हो जाती है। जहां एक व्यक्ति के लिए भोजन बना हो वहीं से भोजन लेना, किन्तु जहां एक से अधिक का बना हो वहां से नहीं लेना। इसका समय एक महीना है। दूसरी प्रतिमा भी एक मास की है। दो दत्ति आहार व दो दत्ति जल स्वीकार करना। इसी प्रकार तीन, चार, पांच, छ: और सात दत्ति अन्न की और उतनी ही पानी की ग्रहण की जाती है। प्रत्येक प्रतिमा का समय एक मास है। केवल दत्तियों की वृद्धि के कारण ही यह क्रमश: द्विमासिकी, त्रिमासिकी, चातुर्मासिकी, पंचमासिकी, षडमासिकी और सप्तमासिकी कहलाती है।63 ___ आठवीं प्रतिमा सप्तरात्रि की होती है। इसमें एकान्तर चौविहार उपवास करना होता है। गांव के बाहर उत्तानासन आकाश की ओर मुंह करके सीधा लेटना, पाश्र्वासन एक करवट से लेटना अथवा निष्कासन पैर को बराबर करके खड़ा होना या बैठना से ध्यान लगाना चाहिए। नवी प्रतिमा सप्तरात्रि की होती है। इसमें चौविहार तेले पारणा किया
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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