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________________ जैन संघ का स्वरूप • 171 (7) जुएं मर जाती हैं। (8) नाई अपने क्षुर या कैंची को संचित जल से धोता है इसलिए पश्चात कर्मदोष होता है। (9) जैन शासन की अवहेलना होती है। इस लोच विधि में आपवादिक विधि का भी उल्लेख है। सुबोधिका पत्र 190-91 में तथा दिगम्बर साहित्य में इसका कुछ अन्य हेतु भी बताये गये हैं - (क) राग आदि का निराकरण करने हेतु, (ख) अपने पौरुष को प्रकट करने हेतु, (ग) सर्वोत्कृष्ट तपश्चरण तथा (घ) लिंग आदि का ज्ञापन करने के लिए लोंच करें -मूलाचार टीका, द्र० उत्तरज्झयणाणि सटिप्पण, पृ० 145-461 344. मूलाराधना, आश्वास 2/88-92: द्र० उत्तरज्झयणाणि सटिप्पण, पृ० 1461 345. हिस्ट्री आफ जैन मोनैकिज्म, पृ० 11। 346. आयारो, लाडनूं संस्करण, पृ० 237,241। 347. वही, पृ० 2951 348. सदासख्यात धर्मवाला तथा धताचारसेवी मनि आदान वस्त्र का परित्याग कर देता है। जो मुनि निर्वस्त्र रहता है, उसके मन में यह विकल्प उत्पन्न नहीं होता कि मेरा वस्त्र जीर्ण हो गया है, इसलिए मैं वस्त्र की याचना करूंगा। फटे वस्त्र को साधने के लिए धागे तथा सुई की याचना करूंगा, उसे साधूंगा, सीऊंगा, छोटा है इसलिए जोड़कर बड़ा बना दूंगा, बड़ा है तो छोटा बनाऊंगा, पहनूंगा, ओढूंगा। द्र० वही, पृ० 2371 349. हार्ट आफ जैनिज्म, पृ० 296-97 में सिन्क्लेयर स्टीवेन्सन जैनों के सिद्धान्त की आलोचना करती हुई कहती हैं कि उनकी नियम मर्यादा अव्यावहारिक है तथा प्रकृति के नियम के विरुद्ध है। इस दृष्टि से तो व्यक्ति को जन्म ही नहीं लेना चाहिये कि कहीं मां न मर जाये। जन्म के बाद सांस भी नहीं लेनी चाहिए क्योंकि जितने क्षण सांस लेता है आयु वृद्धि करता है। उसे मरना भी नहीं चाहिए कि कहीं उसकी चिता में कोई जीव न जल जाये। 350. रिलीजन एण्ड कल्चर आफ जैनज. पृ० 168। 351. ग्लासेनैप, जैनिज्म, पृ० 339-40। 352. हिस्ट्री आफ जैन मोनैकिज्म, पृ० 12।
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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