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________________ 138 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति वह पूर्व में अंग, मगध, दक्षिण में कौशाम्बी, पश्चिम में स्थूण तथा उत्तर में कुणाल से आगे नहीं जायेगी।270 आवास श्रमणी को दुकान में, मुख्य मार्ग पर, तिराहे और चौराहे पर, प्रासाद तथा बाजार में आवास का निषेध था। वह उस घर में भी नहीं रह सकती थी जिसमें आवरण न हो अथवा दीवारों पर कलाकृतियां हों, जहां पुरुष रहते हों या जो मार्ग के समीप हों, जो पेड़ों की जड़ से बना हो अथवा जो वर्षा की दृष्टि से खुला हो। इसका कारण यही था कि श्रमणी पवित्र और सुरक्षित जीवन व्यतीत कर सके। श्रमणी को आवास श्रमणों अथवा गृहस्थों के साथ नहीं मिलता था।272 वह दो, तीन या अधिक के समूह में ही रहें ऐसा आदेश था। जैन श्रमणी कभी भी नि:संग नहीं रह सकती थी तथा रात्रि में भ्रमण उसके लिए निषिद्ध था।273 भिक्षा एवं भोजन श्रमणियों के लिए पुलाक भत्ता नामक भोजन का निषेध था। यह भोजन राजसिक वृत्ति का होता था। अत: इस भोजन से श्रमणी की चित्तवृत्तियां चंचल बन सकती थीं।274 श्रमणी को बिना टूटा साबत नारियल भिक्षा में स्वीकार करने का निषेध था। यह भोजन श्रमणों के लिए निषिद्ध नहीं था। श्रुबिंग को शंका है कि सम्भवत: जैन श्रमणियों की पवित्रता में शंका करते थे।275 उपवास और कायः क्लेश बृहत्कल्पसूत्र के अनुसार स्त्रियों को निम्न प्रकार के काय: क्लेश निषिद्ध थे (1) वह संघ के लिए कायोत्सर्ग नहीं कर सकती थी। (2) वह किसी भी खुले स्थान पर एक पांव उठा कर सूर्याभिमुख होकर कायोत्सर्ग नहीं कर सकती थी। (3) वह वीरासन मुद्रा में नहीं बैठ सकती थी। (4) वह विभिन्न कठिन आसनों को करने के लिए योग्य नहीं मानी गयी है।276 किन्तु श्रमणी प्रव्रज्या के समय से ही ‘पंचमुट्ठिलोय मुण्डभविता' प्रारम्भ कर देती थी।27
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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