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________________ xiv प्राक्कथन प्राचीन भारतीय इतिहास की रचना में मुख्य रूप से ब्राह्मण ग्रन्थों पर ध्यान दिया गया, जिनमें वेद, पुराण, महाकाव्य एवं धर्मशास्त्र प्रमुख हैं। चीनी, यूनानी, लैटिन, तिब्बती, सिंहली आदि विदेशी विवरणों भी इतिहास के अनेक रिक्त स्थानों की पूर्ति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। मौर्यकालीन इतिहास के लिए पालि में लिखे गए बौद्ध ग्रन्थों के उपयोग के पश्चात बौद्ध परम्परा के ग्रन्थों की सहायता इतिहास रचना के लिए ली जाने लगी। जैन स्रोतों की ओर विद्वानों का ध्यान विलम्ब से गया जिसका प्रमुख कारण जैन ग्रन्थ भण्डारों में प्रवेश की समस्या थी। सौभाग्य से यह सब कुछ सरल हो गया है। ___ जैन धर्म यद्यपि बौद्ध धर्म की तुलना में प्राचीनतर माना जाता है, किन्तु जैन साहित्य बौद्धों के बाद का है। जैन परम्परा के अनुसार श्वेताम्बरों से सम्बद्ध प्रचलित सिद्धान्तों का सर्वप्रथम लिखित संकलन 400 ई० लगभग किया गया। पुनर्सम्पादन तथा संशोधन का कार्य इसके पश्चात भी चलता रहा। दिगम्बरों के प्रारम्भिक ग्रन्थ का सर्वप्रथम लेखन 150 ई० पू० के आस-पास माना जाता है। वर्तमान युग में जैन स्रोतों से परिचय कराने का श्रेय सर्वप्रथम पश्चिमी विद्वान कॉबेल को जाता है जिसने 1845 ई० में वररुचि की कृति प्राकृत प्रकाश प्रकाशित की। तत्पश्चात जर्मन विद्वान पिशेल और हरमन-जैकोबी द्वारा पउमचरिय, समराइच्च कहा, परिशिष्टपर्वन प्रकाशित किया गया। 12वीं शताब्दी के ग्रन्थ परिशिष्टपर्वन में मौर्य काल तक के मगध सम्राटों की चर्चा है। नौवीं शताब्दी तक जैन ग्रन्थों में भारत के सामान्य इतिहास के प्रति रुचि दिखाई पड़ती है और वे मगध, सातवाहन, शाक, गुप्त और कान्यकुब्ज के राजवंशों का वर्णन करते हैं। किन्तु इसके पश्चात जैन इतिहासकार राजस्थान गुजरात तथा मालवा तक ही सीमित होकर इन क्षेत्रों के इतिहास लिखने में रुचि लेने लेगा। खेद है कि इतिहास दर्शन की अधिकांश पुस्तकों में जैन इतिहास दृष्टि का उल्लेख नहीं मिलता। सी०एच० फिलिप्स की Historians of India, Pakistan and Ceylon; ए० के० वार्डर की An Introduction of Indian Historiography तथा वी०एस० पाठक की Ancient Historians of India पुस्तकों में भी जैन इतिहास पर लेख का अभाव है जबकि जैन ग्रन्थों में ऐतिहासिक स्रोतों का अपार भण्डार है। दूसरी-तीसरी शती से लेकर चौदहवीं-पंद्रहवीं शताब्दी तक आगम, पुराण, चरित काव्य, प्रबन्ध साहित्य, पट्टावली, स्थविरावली प्रशस्ति, विज्ञप्ति, पत्र आदि के रूप में आज महत्वपूर्ण जैन ऐतिहासिक स्रोत उपलब्ध हैं। जैन पुरातात्विक सामग्री भी पर्याप्त रूप में प्राप्त हो रही है। 21वीं शताब्दी की देहलीज पर विश्व आज जिस वैचारिकशून्यता के दौर से गुजर रहा है वहाँ कम्मवाद अनेकान्तवाद, मानववाद और अहिंसा सम्बन्धी जैन अवधारणाएं मानव समाज का मार्ग प्रशस्त करने हेतु वर्तमान युग के सर्थवा अनुकूल हैं। प्रसन्नता का विषय है कि अपेक्षाकृत उपेक्षित जैन ग्रन्थों के आधार पर इतिहास
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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