SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 124 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति (2) सूर्यास्त के पश्चात, (3) मध्यान्ह संध्या तथा (4) अर्द्धरात्रि संध्या। चार प्रतिपदाओं में भी स्वाध्याय निषिद्ध था।84 (1) आषाढ प्रतिपदा (2) इन्द्रमह प्रतिपदा (3) कार्तिक प्रतिपदा (4) सुग्रीष्म प्रतिपदा : : : : सावन का पहला दिन, कार्तिक का प्रथम दिन, मंगसर का प्रथम दिन, वैशाख का प्रथम दिन। अस्वाध्यायी का मूल वैदिक साहित्य में ढूंढ़ा जा सकता है। जैन साहित्य में उसे लोकविरुद्ध होने के कारण मान्यता मिली। आयुर्वेद के ग्रन्थों में भी अस्वाध्यायी की परम्परा का उल्लेख मिलता है।।85 कृष्णपक्ष की चतुर्दशी और अमावस्या, शुक्लपक्ष की अष्टमी, चतुर्दशी और पूर्णिमा, सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय, अकाल, वर्षा, बिजली चमकना, मेघगर्जन, आत्मीय, स्वजन, राष्ट्र और राजा के आपत्काल, श्मशान, सवारी यात्राकाल में वधस्थान, युद्ध के समय, महोत्सव तथा उत्पात उल्कापात, भूकम्प, बाढ़, आंधी के दिन, जिन दिनों ब्राह्मण अनध्याय रखते हैं उन दिनों तथा उन देशों में एवं अपवित्र अवस्था में अध्ययन नहीं करना चाहिए।।86 जैनागम भी इसी परम्परा को मानते हैं। ___आचार्योपाध्याय के लिए भी आवश्यक था कि जो शिष्य विनययुक्त हो उसके पूछने पर अर्थ और तदुभय सूत्र और अर्थ दोनों जैसे सुने हों जाने हों वैसा बताये।।87 कुछ गुरु भी अध्यापन के अयोग्य समझे जाते थे।।88 इस प्रकार जैन मत में गुरु शिष्य सम्बन्ध भारतीय संस्कृति के अनुरूप ही घनिष्ट व अनुशासनपूर्ण थे। सामाचारी सामाचारी 89 संघीय जीवन जीने की कला है। इससे पारस्परिक एकता की भावना पनपती है। संघ दृढ़ बनता है। आचार जीवनमुक्ति का साधन है। जो मुनि संघीय जीवनयापन करते हैं उनके लिए व्यवहारात्मक आचार भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना व्रतात्मक आचार। जिस संघ या समूह में व्यवहारात्मक आचार की उन्नत विधि है, उसकी सम्यक् परिपालना होती है, वह संघ दीर्घायु होता है। उसकी एकता अखण्ड होती है। समाचारी दो प्रकार की होती है-(1) ओघ सामाचारी एवं (2) पद विभाग सामाचारी।
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy