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________________ 114 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति अंगों में अधिक व्याख्या नहीं हैं किन्तु इनसे ऐसा संकेत मिलता है कि यह विविध पदाधिकारियों के अधीन प्रशासनिक इकाइयां थीं। यह थीं : कुल, गण तथा सम्भोग। कुल कुल गण के निर्माण की इकाई थी। अंग और मूल सूत्रों में इसके विषय में विवरण प्राप्त नहीं होते। श्रमण जिस कुल से सम्बन्धित हो उसके प्रति उससे स्वामिभक्ति की आशा की जाती थी। टीकाकार इसकी व्याख्या करते हुए कहते हैं कि यह 'एगायारियस्स सन्ताइ'99 अर्थात् यह एक विशिष्ट आचार्य के शिष्यों का समूह होता था। वह इसे गच्छ से समीकृत कर देते हैं।100 गण गण सबसे बड़ी इकाई थी। प्राचीनता की दृष्टि से यह इकाई प्राक् महावीर तीर्थंकरों तक पहुंचती है।101 भाष्यकारों ने गण की व्याख्या समान वाचनाक्रिया : साधु समुदयः अर्थात् श्रमणों का समान वाचना वाले समूह102 के रूप में की है। दूसरी व्याख्या कुल समुदय:103 अर्थात् कुलों का समूह के रूप में की जाती है। किन्तु भाष्यकारों ने इसे गच्छ से एकीकृत कर दिया है जिसकी कि चर्चा आगम के परवर्ती साहित्य में मिलती है किन्तु मूल अंगों में कहीं-कहीं प्राप्त होती है। भगवतीसूत्र की टीका के अनुसार गण की रचना तीन कुलों से की जाती थी।104 भिक्षु को छ: माह तक अपना गण बदलने की अनुमति नहीं थी।105 महावीर की यह व्यवस्था थी कि जो निर्ग्रन्थ जिस गण में दीक्षित हो, वह जीवनपर्यन्त उसी में रहे। विशेष प्रयोजनवश अध्ययन आदि के लिए वह गुरु की आज्ञा से साधर्मिक गणों में जा सकता था।106 परन्तु दूसरे गण में संक्रमण करने के पश्चात् छ: मास तक वह पुन: परिवर्तन नहीं कर सकता।'07 छ: मास पश्चात् वह परिवर्तन कर सकता था। जो मुनि विशेष कारण के बिना छ: मास के भीतर-ही-भीतर गण परिवर्तन कर लेता, उसे गाणंगणिक कहा जाता था।108 उल्लेखनीय है कि महावीर के ग्यारह गणधर तत्कालीन संघ के ग्यारह गणों के प्रमुख थे। इस प्रकार सैद्धान्तिक रूप से प्रत्येक गण को ऐसे योग्य व्यक्ति के अधीन रखा गया जो अध्यापन में निपूर्ण तथा आदर्शचरित्र हो। __ इस प्रसंग में श्रुबिंग की मान्यता है कि इन गणधरों के उत्तराधिकारियों ने सिद्धान्तों का प्रचार शास्त्र और कुलों में किया। इस प्रकार से गण संज्ञा सिद्धान्त के इतिहास की दृष्टि से प्रत्यय है तथा एक तकनीकि शब्द भी है।109
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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