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________________ हैं बल्कि भूख से मरने वालों की अपेक्षा अधिक खाने से मरनेवालों की संख्या अधिक है। आहार शरीर का निर्वाह करने के लिए है, परन्तु अधिक आहार शरीर बिगाड़ने का कारण होता है। आज आप लोगों के शरीर में जो नानाविध विकार घुसे हुए हैं, अनका मुख्य कारण अधिक और अहितकर पदार्थों का खाना है। आंखों से आंसू निकल रहे हैं, फिर भी शाक तो वही पसंद होगा, जिसका रंग मिर्चों के कारण लाल हो गया हो। ऐसा जान पड़ता है कि आजकल भोजन का उद्देश्य जिह्वा को तृप्त करना है, शरीर-निर्वाह करना नहीं। बूढों, जवानों और बच्चों का भोजन एक-सा हो रहा है। भोजन में ब्रह्मचर्य की रक्षा को कोई स्थान नहीं है। न खाने योग्य भोजन बच्चों को खिलाया जाता है। अपथ्य भोजन आयु का नाशक है, इसीलिए भगवान् ने कहा है-आहार भी मृत्यु का कारण है। आहार के निरोध से भी आयु का नाश होता है-अन्नपानी के त्याग से मृत्यु हो जाती है। तात्पर्य यह है कि यद्यपि शरीर आहार पर टिका हुआ है, परन्तु उसकी अधिकता या उसका अभाव मृत्यु का कारण होता है। अतएव आयुभेद का तीसरा कारण आहार है। रोग भी आयुष्य के विनाश का कारण है। अनेक रोग ऐसे होते हैं, जिससे शीघ्र ही जीवन का अन्त आ जाता है। अमेरिका आदि देशों में भारत की तरह जल्दी रोग नहीं होता; क्योंकि वहां के लोग गंदी वायु में नहीं रहते। गंदी जगह और गंदे घरों में बीमारी के कीड़े पैदा होते हैं। उनसे रोग फैलता है और मनुष्य मर जाता है। इस प्रकार बीमारी भी आयुष्य नाश का कारण है। पराघात भी आयु-विनाश का कारण है। गड्डे में गिर जाना, कुए में पड़ जाना या मकान पर से नीचे गिर पड़ना, यह सब पराघात है और इससे मृत्यु हो जाती है। स्पर्श से भी आयुष्य नष्ट हो जाता है। अर्थात् किसी वस्तु के छू जाने मात्र से भी मृत्यु हो जाती है। जैसे-सांप आदि का दंस, स्पर्श होना, बिजली का छू जाना आदि। ___ आन-प्राण अर्थात् श्वासोच्छ्वास भी मृत्यु का कारण है। श्वासोच्छ्वास के सर्वथा रुक जाने या अधिक बढ़ जाने से आयु का नाश होता है। __ ग्रन्थकारों का कथन है कि मैथुन करने में श्वास अधिक आता है, जिससे आयु नष्ट होता है। इसके विरुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन करने से आयु का नाश नहीं होता और शरीर में बल भी रहता है। - भगवती सूत्र व्याख्यान २५६
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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