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________________ में पड़ा हुआ है। हे प्रभो! इसकी आत्मा मेरे ही समान या मुझ से भी अधिक उज्ज्वल बन जाय।' हिंसा से हिंसा नहीं मिट सकती। जो हिंसा से हिंसा मिटाने का विचार करते हैं, वे विचारक नहीं हैं। इससे तो हिंसा की परम्परा और दीर्घ बन सकती है, हिंसा का उच्छेद नहीं हो सकता। मान लीजिए, एक आदमी हिंसा कर रहा है। आप उसे हिंसा करते देख मारने दौड़ते हैं या मारते हैं तो आपकी यह क्रिया क्या है? आप स्वयं हिंसा में प्रवृत्त होकर उस पहले हिंसक की कोटि में पहुंच जाते हैं। क्या आप दूसरों की हिंसा को बुरा समझते हुए भी अपनी हिंसा को बुरा न समझेंगे? अगर आप अपनी हिंसा को हेय नहीं समझते तो दूसरों द्वारा होने वाली हिंसा को हेय समझने का आपको क्या अधिकार है? अगर हिंसक जीव के प्रति आपके अन्तःकरण में सच्ची करुणा विद्यमान है तो प्रेम से उसे हिंसा से दूर करो। आपकी करुणा जैसी हिंस्य जीव पर है, वैसी ही हिंसक जीव पर होनी चाहिए। आपको मरने वाला जीव प्यारा लगता है तो मारने वाला भी प्यारा लगना चाहिए। उस पर भी आपको दया करनी चाहिए। ऐसा करने से आप अपना कल्याण तो करेंगे ही, साथ ही अद्भुत मंत्र से सहज ही हिंसक को हिंसा से बचा सकेंगे। अतएव पापी से कभी घृणा मत करो, केवल पाप से घृणा करो। अलबत्ता, पापी के पापों की सराहना भी न करना और उसके पापों को अपने आत्मा में प्रविष्ट न होने देना। सोचना कि यह अज्ञान के कारण पाप कर रहा है। वह अज्ञान मुझमें भी न आ जावे। मेरे अज्ञान का अन्त तभी होगा, जब मैं पापी के बदले पाप से घृणा करूंगा। कभी-कभी ऐसा अवसर आ पड़ता है कि पापी से असहकार करना अनिवार्य हो जाता है। और उस समय ऐसा करना भी अच्छा होता है। मगर असहकार में भी घृणा या द्वेष को स्थान नहीं है। असहकार पाप की भागीदारी से बचने के लिए किया जाता है। डाक्टर यदि रोगी को लेकर पड़ा रहे तो रोगी को भी फायदा न होगा और स्वयं डाक्टर भी रोगी हो जायगा। इसलिए डाक्टर दूसरे को भी यही कहेगा कि रोगी के रोग के चेप से बचने के लिए तुम दवा पास रक्खो और रोगी से चिपटो मत। यानी डाक्टर रोगी का रोग भी मिटाना चाहता है और अपने में तथा दूसरे में रोग भी नहीं फैलने देता। शास्त्र में भी ऐसी बात समझाई है, लेकिन समझफेर से लोग कुछ का कुछ अर्थ करते हैं। उदाहरण के लिए-शास्त्रों में कहा है कि हिंसक, गोघाती एवं शराबी की संगति मत करो। इसका अर्थ हम लोग यह समझ - भगवती सूत्र व्याख्यान २३५
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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