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________________ बतलाया है। तुम तप करके दूसरे भूखे मरने वालों को दान दो तो उनका भला होगा और तुम घाटे में भी नहीं रहोगे! जिसके हृदय में समभाव होगा, जिसके अन्तःकरण में पर के प्रति करुणा का भाव उत्पन्न होगा, वह तप किये बिना नहीं रहेगा। माहण या मा-हन, ब्राह्मण को कहते हैं। ब्राह्मण में ब्रह्मचर्य के साथ 'मत मार' यह अर्थ भी गर्भित है। अर्थात् जो स्थूल-प्राणातिपात से स्वयं निवृत्त होकर, दूसरों को अहिंसा का न मारने का उपदेश देता है और ब्रह्मचर्य का पालन करता है वह 'मा-हन' कहलाता है। 'मत-मार इस प्रकार के शब्द किस के मुख से निकलेंगे? जब वह स्वयं मारता होगा, तब वह दूसरों को नहीं मारने का उपदेश कैसे दे सकता है? वह तो मारने का ही उपदेश देगा। 'माहन' का अर्थ तो ऐसा ब्राह्मण है जो ब्रह्मचर्य पालन के साथ ही 'मतमार' का उपदेश देता है। लेकिन जो पुरुष यह कहता है कि मैं मंत्र पढता हूं, तू छुरी चला तो उसे ब्राह्मण किस प्रकार कहा जा सकता है? तात्पर्य यह है कि श्रमण और माहन नकली भी होते हैं। इसलिए 'तथारूप' विशेषण लगाकर उसका निराकरण कर दिया है। यहां एक प्रश्न यह खड़ा किया जा सकता है कि धर्म की बात किसी साधारण श्रमण-माहन से सुनी जाय या तथारूप श्रमण-माहन से सुनी जाय उसमें क्या अन्तर है? इसका उत्तर यह है कि शब्द ब्रह्म माना जाता है। शब्द में बहुत शक्ति है। तथारूप वाले शास्त्र को प्रेम से सुनाएंगे और अतथारूप वाले बिना प्रेम के सुनाएंगे। प्रेम से सुनाये और बिना प्रेम से सुनाये में बहुत अन्तर पड़ता है। एक हाथी-दांत, हाथी के मुंह में लगा हुआ होता है, बड़े-बड़े दरवाजे तोड़ देता है और दूसरा हाथी-दांत स्त्रियों की चूड़ी का है। हाथी-दांत तो वही है, परन्तु चूड़ी बना हुआ हाथी-दांत दरवाजे नहीं तोड़ सकता, पुरुषों के कलेजे को भले ही तोड़ दे, यानी सुन्दरता भले ही बढा सके। इसी प्रकार तथारूप वाले श्रमण के शब्द, हाथी के मुंह में लगे हुए दांत के समान शक्तिशाली है और अतथारूप वाले शब्दों को अलंकारी भले ही बना दें, शब्दचातुर्य द्वारा आटा भले ही कमा लें, लेकिन उनके शब्दों में वह वास्तविक शक्ति नहीं आ सकती। इसीलिए शास्त्र में तथारूप विशेषण देकर यह बात स्पष्टतया सूचित कर दी है। ___ भगवान् कहते हैं-हे गौतम! ऐसे तथारूप वाले श्रमण-माहन के मुख से गर्भवती माता व्याख्यान सुनती है और सुन कर गर्भ का जीव धर्म की ऊंची भावना भाता है और उस समय अगर काल कर जाता है तो वह स्वर्ग में जाता है। २३२ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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