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________________ करके किसी का आत्मा दुखाउंगा तो दया कहां रहेगी? यहां यह कहा जा सकता है कि तप संवर और निर्जरा के लिए कहा गया है, फिर यहाँ दया के लिए क्यों कहते हैं? इसका उत्तर यह है कि संवर और निर्जरा भी वस्तुतः स्वदया ही है । अतएव दया के लिए तपस्या करना असंगत नहीं है। I लोग घर में माल होने पर किवाड़ खुले नहीं रखते। हां घर में कुछ न हो तो भले ही रखते हैं। इस प्रकार तप रूपी धन को क्रोध रूपी चोर न चुरा ले जावे, इसके लिए क्षमा और शान्ति रूपी किवाड़ सदा बन्द रक्खो । निन्दा एवं क्रोध आदि से तप का महत्व घट जाता है। करोड़ों वर्षों का तप भी क्रोध की आग में भस्मीभूत हो जाता है। इसलिए तप को करुणा, दया और क्षमा की पेटी में बंद रक्खो । ऐसा करने पर अभूतपूर्व और अद्भुत आनंद प्राप्त होगा। जैसे वायु के बिना अग्नि प्रज्वलित नहीं होती किन्तु बुझ जाती है इसी प्रकार बिना क्षमा के तप भी नहीं ठहरता। अब मूल बात पर आइए। पृथ्वी का उपकार सब पर है। क्या जैन और क्या वैष्णव-सभी एक स्वर से यह बात स्वीकार करते हैं । यह पृथ्वी माता है। माता को नंगी करने के लिए अगर कपड़े खींचे जाएं तो यह देख कर किसका हृदय दुखी न होगा? माता के कपड़े उतार कर पुत्र को पहनने के लिए दिये जावें तो कौन पुत्र उन्हें पहनना पसंद करेगा? इसी प्रकार जिस आर्य देश का खाते-पीते हो उस आर्य देश को अनार्य बनाते जाते हो उसे दिन-दिन नंगा करते जाते हो, उसकी भी कुछ फिक्र है ? आज आप चाहे इसकी पुकार न सुनें मगर कोई न कोई तो सुनेगा ही । विलायत से आते हुए अंग्रेज से कोई पगड़ी बांधने के लिए कहे तो वह कदापि पगड़ी नहीं बांधेगा। वह कहेगा- हम यहां अपनी माता का गौरव घटाने नहीं आये हैं - गौरव बढ़ाने आये हैं। लेकिन अनेक हिन्दुस्तानी अपनी मातृभूमि में रहते हुए भी साहब सरीखा टोप लगाते हैं और अंग्रेजी पोशाक पहनकर मातृभूमि का गौरव घटाते हैं । 1 पृथ्वी का संबंध अर्हन्त से है । इसलिए गौतम स्वामी ने पृथ्वी के विषय में प्रश्न किया है। महापुरुष इस पृथ्वी पर ही जन्मे हैं। जिस पृथ्वी पर हम हैं, उस पर बड़े-बड़े अवतार हो गये हैं। यह बात नहीं है कि वे पूर्वपुरुष इस संसार में जन्म लेने से पूर्व किसी एक ही जगह रहते हों और फिर संसार में जन्म धारण करके उच्च गति प्राप्त करते हों । अन्य लोग अपने अवतारों एवं महापुरुषों के विषय में इसी प्रकार की बात कहते हैं लेकिन जैनधर्म ऐसा नहीं कहता। जैन धर्म यह बात नहीं मानता कि कोई भी शुद्ध आत्मा अपने स्थान श्री जवाहर किरणावली १०
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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