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________________ लोक में अन्न, जल, वस्त्र आदि सभी जीवनोपयोगी वस्तुएं पृथ्वी की सहायता से ही प्राप्त होती हैं। लोकोत्तर में सामायिक पौषध साधुता, श्रावकपन, आत्मिक सिद्धि, योगसिद्धि आदि पृथ्वी पर ही होती हैं। आप लोग बराबर हिसाब लगा कर पृथ्वी के उपकार का विचार कीजिए। राते रौज विचारो आज कमाया शुं अहीं रे। सूता मन महीं रे। राते.। खोवो पीवो प्रभुए दी— ते साटे मैं शुं शुं की ए खातो सरवर कीधी छे के नहीं रे। राते.। आपने कभी पिछली रात में यह भी विचार किया है कि हमने इस संसार में क्या किया? कमाई ज्यादा या खर्च ज्यादा किया। यह हिसाब आपने शायद ही लगाया हो। अलबत्ता पैसों का हिसाब आपने जरूर किया होगा। लेकिन पैसों का हिसाब करते समय कभी यह भी सोचा है कि हमने वेतन के रूप में प्रजा का इतना पैसा लिया है तो उसके बदले प्रजा का क्या काम किया है? जिस प्रकार दुकानदार अपने पैसे का हिसाब मिला लेता है उसी प्रकार अपना हिसाब आप भी देखो। इस संसार में जन्म ग्रहण करके इस पृथ्वी का दिया खाया है तो इसके बदले में उसका क्या उपकार किया है ? उक्त कविता में कहा है कि खाना-पीना भगवान ने दिया है, तो क्या यह कथन ठीक है? आप कहेंगे यह किसी अजैन की बनाई हुई कविता है। वास्तव में यही बात है। लेकिन उसमें जो यह बात मुख्य रूप से बतलाई गई है उसकी ओर ही ध्यान देना चाहिए। इसके अतिरिक्त एक बात यह भी है कि निमित्त को भी कर्ता माना जाता है और इस प्रकार व्यवहार किया जाता है। सूर्य भक्त कहता है कि मैंने जो कमाई की है वह सूर्य के ही प्रताप से। यह सूर्य के प्रति उसकी भक्ति का ही द्योतक है। अगर कोई यह कहे कि सूर्य ही देता है तो फिर हमें क्यों नहीं देता? तो यह कथन निमित्त और उपादान को न समझने के कारण है। सूर्य भक्त का यह कथन कि मैंने सूर्य के प्रताप से कमाई की, निमित्त की अपेक्षा से ही माना जा सकता है, क्योंकि अगर सूर्य का प्रकाश न होता तो यह कमाई कैसे कर पाता! हां, सूर्य का प्रकाश होने पर भी मिला है उद्योग और लाभान्तराय कर्म के क्षयोपशम से भी। लेकिन प्रकाश देने वाले का उपकार तो न भूलना चाहिए। दस बोल की योगवाई (प्राप्ति) धर्म के प्रताप से होती ही है! फिर भी लोग इस बात को भूल जाते हैं। ८ श्री जवाहर किरणावली .
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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