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________________ एकादशोत्तर यअधस्तनेषु सप्तोत्तरं शतं च मध्यमके। शतमेकं उपरितने पंच, एवं अनुत्तर विमानानि ।। प्रश्न-भगवन्! कितनी पृथ्वियां कही हैं? उत्तर-हे गौतम! सात पृथ्वियां कही हैं। वह इस प्रकार है-रत्नप्रभा यावत् तमस्तमाप्रभा। प्रश्न-भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितने लाख निरयावास-नारकों के रहने के स्थान कहे हैं? उत्तर-गौतम! तीस लाख निरयावास कहे हैं। सब पृथ्वियों में निरयावासों की संख्या बतलाने वाली गाथा इस प्रकार है-पहली पृथ्वी में तीस लाख, दूसरी में पच्चीस लाख, तीसरी में पन्द्रह लाख, चौथी में दस लाख, पांचवीं में तीन लाख, छठी में पांच कम एक लाख और सातवीं में सिर्फ पांच निरयावास कहे गये हैं। प्रश्न-भगवन्! असुर कुमारों के कितने लाख आवास हैं? उत्तर-गौतम! इस प्रकार हैं-असुर कुमारों के चौसठ लाख आवास कहे हैं। इसी प्रकार नागकुमारों के चौरासी लाख, सुवर्णकुमारों के बहत्तर लाख, वायुकुमारों के छयानवे लाख तथा द्वीपकुमार, दिक्कुमार, उदधिकुमार -विद्युतकुमारेन्द्र, स्तनित कुमार और अग्निकुमार, इन छह युगलकों के छियत्तर लाख आवास कहे हैं। प्रश्न-भगवन्! पृथ्वीकायिकों के कितने लाख आवास कहे हैं? उत्तर-गौतम! पृथ्वीकायिकों के असंख्यात लाख आवास कहे हैं और इसी प्रकार यावत्-ज्योतिष्क देवों के असंख्यात लाख विमानावास कहे हैं। प्रश्न-भगवन्! सौधर्म कल्प में कितने विमानावास कहे हैं? उत्तर-गौतम! वहां बत्तीस लाख विमानावास कहे हैं। इस प्रकार : अनुक्रम से बत्तीस लाख, अट्ठाईस लाख, बारह लाख, आठ लाख, चार लाख, पचास हजार, चालीस हजार विमानावास जानने चाहिए। छह हजार विमानावास सहस्रार देवलोक में हैं। आनत और प्राणत कल्प में चार सौ, आरण और अच्युत में तीन सौ, इन चारों में मिल कर सात सौ विमान है। एक सौ ग्यारह विमानावास अधस्तन (निचले ग्रैवेयक) में, एक सौ सात बीच के में, और एक सौ ऊपर के ग्रैवेयक में हैं। अनुत्तर विमान पांच ही हैं। व्याख्यान श्री गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर से प्रश्न किया-प्रभो! आपने अपने ज्ञान में देखकर कितनी पृथ्वियां कही हैं। भगवती सूत्र व्याख्यान ५ 30200000
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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