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________________ रोह के प्रश्न का भगवान् ने उत्तर फर्माया-हे रोह! यह नहीं कहा जा सकता कि जीव से अजीव की या अजीव से जीव की उत्पत्ति हुई है। यह दोनों ही पदार्थ अनादि हैं। वैज्ञानिक कहते हैं हमारी दृष्टि अपूर्व है, इसी कारण हम किसी वस्तु का नाश होना कहते हैं, परन्तु वास्तविक रूप से देखा जाये तो कोई भी वस्तु नष्ट नहीं होती। केवल उसकी अवस्थाएं पलटती हैं। जली हुई मोमबत्ती के विषय में यह समझा जाता है कि वह नष्ट हो गई, परन्तु मोमबत्ती, वस्तुतः नष्ट नहीं होती, सिर्फ उस की शक्ल बदलती है। उसका संग्रह बिखर जाता है। सुना आता है कि वैज्ञानिकों ने ऐसे आकर्षक यंत्र बनाये हैं, जिन्हें जलती हुई मोमबत्ती के इधर-उधर रख देने से, जली हुई मोमबत्ती के परमाणु उन यंत्रों में खिंच कर आ जाते हैं, और अगर उन्हें फिर मिल दिया जाय तो जैसी की तैसी मोमबत्ती तैयार हो जाती है। जल के विषय में भी यही बात है। साधारणतया यह समझा जाता है कि जमीन पर गिरा हुआ जल सूख कर नष्ट हो जाता है, परन्तु विज्ञानवेत्ता कहते हैं कि वह नष्ट नहीं हुआ है, किन्तु दो प्रकार की वायु थी, जो बिखर गई है। आक्सीजन और हाईड्रोजन नामक दोनों हवाओं से जल बनता है और दोनों के बिखरने से जल नहीं रहता। मेरी कारेली नामकी एक पाश्चात्य विदुषी ने लिखा था- जब एक रजकरण का भी नाश नहीं है, उसका भी सिर्फ रूपान्तर होता है, तो उस महाशक्ति का, जो संसार में गजब कर रही है, कैसे नाश हो सकता है? उसका नाश होने से तो गजब हो जायगा। रजकण और मोमबत्ती का भी नाश नहीं है, तो आत्मा कैसे नष्ट हो सकता है? भगवान् कहते हैं-हे रोह! जड़ से चैतन्य बना हो या चैतन्य से जड़ बना हो, यह संभव नहीं है। जैसे आकाश के फूल नहीं होते, इसी प्रकार निराकार से साकार और साकार से निराकार की उत्पत्ति संभव नहीं है। जो लोग भूतों से चैतन्य की उत्पत्ति मानते हैं, उन्हें विचारना चाहिए कि किसी भी भूत में चैतन्य नहीं पाया जाता, तब उनसे चैतन्य कैसे उत्पन्न हो सकता है? अतएव जड़ और जीव-दोनों अनादि हैं, यही मानना युक्तिसंगत है। अब आप कह सकते हैं कि आपने जीव और जड़ दोनों को अनादि बतलाया है, मगर वेदान्ता तो ब्रह्म के अतिरिक्त अन्य किसी पदार्थ की सत्ता ही स्वीकार नहीं करते। इस विषय में आप क्या कहते हैं? इस संबंध में इतना ही कहना पर्याप्त है कि यदि पूरी तरह पता लगाया जाय तो ब्रह्म के अतिरिक्त - भगवती सूत्र व्याख्यान १४६
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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