SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपराध नहीं मानता। वह भी वही अपराध करता है। इन दोनों के अपराध का परिणाम क्या होगा? अपराध को अपराध समझकर करने वाले को कानून के अनुसार नियत सजा मिलेगी, मगर पागल को तो पागलखाने में ही बंद कर दिया जायगा। पहला व्यक्ति नियमित अवधि पर छुटकारा पा जाएगा, मगर पागल के लिए कोई अवधि निश्चित नहीं है। उसकी सजा का अन्त तभी होगा, जब उसका पागलपन दूर हो जायगा। इसी प्रकार मिथ्यात्व का पाप बहुत बड़ा है। इस पाप का अन्त नहीं है। __मिथ्याज्ञान नष्ट हो गया; सम्यग्ज्ञान प्राप्त हो गया, व्रत-अव्रत की समझ आ गई, फिर व्रत क्यों नहीं स्वीकार करते? न स्वीकार करोगे तो अव्रत की क्रिया लगेगी ही। मान लीजिए, आपने देवलोक के रत्न लेने का त्याग नहीं किया है। ऐसी स्थिति में अगर कोई देव देवलोक के रत्न लाकर आपको दे तो आप इंकार करेंगे? आप यही सोचेंगे कि इन्हें लेने में क्या हर्ज है? मैंने इन्हें लेने का त्याग नहीं किया है। आप उन्हें ले लेंगे। अगर त्यागा हुआ है तो आप उन्हें कदापि न लेंगे। यह न लेना व्रत का ही प्रताप है। और त्याग न होने पर ले लेना ही कर्म आने का मार्ग है। यही अव्रत की क्रिया कहलाती है। चाहे आपको विचार हो या न हो, परन्तु जिसका त्याग न होगा उसके लेने में आप उद्यत हो जाएंगे। अतएव अव्रत की क्रिया से बचने के लिए त्याग करना नितान्त आवश्यक है। तीसरी क्रिया प्रमाद सम्बन्धी है। एक घटना सुनी थी। किसी समय उदयपुर-जेल में एक बुढ़िया अपराधिनी आई थी। बुढ़िया बैठी थी और पहरेदार को नींद आ गई। वह तलवार खूटी पर टांग कर सो गया। सिपाही को यह ख्याल नहीं था कि बुढ़िया मेरी तलवार लेकर अपने आपको मार लेगी, न उसकी यह भावना ही थी कि वह मार ले! मगर उस बुढ़िया को न जाने क्या सूझी कि उसने पहरेदार की तलवार उठाई और आत्महत्या करने लगी। बुढ़िया को तलवार चलाने का ज्ञान नहीं था; अतएव उसने तलवार की नौंक गले में घुसेड़ ली। इस कारण वह मरी तो नहीं हाय-हाय करने लगी। उसकी आवाज सुनकर पहरेदार जाग उठा। उसने बुढ़िया से तलवार छीन ली। मुकदमा अदालत में गया और अदालत से उस सिपाही को भी सजा मिली। सिपाही की भावना यह नहीं थी कि बुढ़िया मेरी तलवार से आत्महत्या करने का यत्न करेगी, फिर भी सिपाही को सजा मिलने का क्या कारण है ? वास्तव में सिपाही को उसकी गफलत के लिए सजा मिली। - भगवती सूत्र व्याख्यान १२१
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy