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________________ प्राणातिपात क्रिया लगती है । अध्यवसाय क्या है? और उनमें किस प्रकार होता है? यह नहीं जान सकते। इसके लिए अर्हन्तों के वचन पर ही विश्वास करने से काम चल सकता है। जीव को कितनी दिशाओं से स्पर्शी हुई क्रिया लगती है, इस विषय छह दिशा और तीन दिशा का अन्तर है । लोक कहीं से कम चौड़ा है कहीं ज्यादा चौड़ा है। त्रस नाड़ी में रहने वाले जीवों को छहों दिशाओं की क्रिया लगती है लेकिन सनाड़ी के बाहर स्थावरनाड़ी के कोने में रहे हुए जीव को जघन्य तीन दिशाओं में स्पृष्ट क्रिया लगती है और उत्कृष्ट छह दिशाओं में स्पृष्ट | गौतम स्वामी पूछते हैं- भगवन् ! प्राणातिपात क्रिया करने से लगती है या बिना किये ही लगती है ? भगवान् ने फरमाया - हे गौतम ! करने पर ही लगती है, बिना किये नहीं लगती । इस पर आप कह सकते है कि- तब तो अपने हाथ से कोई सावद्य क्रिया न करें, तो बस पाप से बच जाएंगे। अपने हाथ से रोटी बनाने में क्रिया लगती है; दूसरे से बनवा लेने में क्या पाप है? कई लोगों की यह मिथ्या कल्पना है कि दूसरे की बनाई हुई सीधी रोटी खा ली, स्वयं हाथ से नहीं बनाई तो क्रिया नहीं लगती। क्योंकि शास्त्र में कहा है करने वाले को ही क्रिया लगती है। ऐसा समझने वालों को यह बात ध्यान में रखना चाहिए कि जो वस्तु तुमने खाई या काम में ली और जो तुम्हारे उद्देश्य से बनाई गई है वह भले ही तुमने न बनाई हो, दूसरे ने ही बनाई हो, लेकिन वह बनाई तुमने ही है। जो रोटी तुमने खाई, या जो चीज काम में ली, उसके लिए तुम यह भले ही कहो कि यह चीज दूसरे ने बनाई है, मगर उस चीज की क्रिया तुम्हें भी लगेगी, क्योंकि उसमें तुम्हारा निमित्त है। उसे खाने या काम में लाने से परोक्ष रूप में तुमने प्रेरणा की है। अगर तुम बनाने वाले से कह देते कि मेरे लिए मत बनाना, मैं किसी दूसरे प्रकार से निर्वाह कर लूंगा, तब तो बात दूसरी है। लेकिन ऐसा न करने पर जो तुम्हारे ही लिए बना है, उसे काम में लेना या खाना और फिर यह कहना कि हमने यह क्रिया नहीं की, यह क्रिया से बचने का असफल बहाना है, केवल अपना मन - बहलाना है। अलबत्ता, जिस क्रिया के करने में मन भी नहीं लगाया, वचन भी नहीं लगाया और काया भी नहीं लगाई, वह क्रिया अवश्य न लगेगी । भगवती सूत्र व्याख्यान ११७
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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