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________________ लोक और अलोक के अन्त आपस में किस प्रकार स्पष्ट हैं, यह बात स्पष्ट रूप से समझाने के लिए ही द्वीप-समुद्र, जल-जलयान, वस्त्र छिद्र और धूप-छाया के उदाहरण दिये गये हैं। इन सब उदाहरणों द्वारा यह प्रदर्शित किया गया है कि जैसे द्वीप-समुद्र आदि के अंत आपस में एक दूसरे का स्पर्श करते हैं, उसी प्रकार लोक और अलोक का अन्त आपस में स्पर्श करता है। इन्हें देखकर लोक और अलोक के अन्त के स्पर्श का अनुमान करो, यह इन उदाहरणों द्वारा सूचित किया गया है। जिसने द्वीप और समुद्र नहीं देखा है, वह भी वस्त्र एवं छिद्र देखकर यह अनुमान कर सकता है कि जिस प्रकार वस्त्र और छिद्र का अन्त है, इसी प्रकार पृथ्वी का भी कहीं न कहीं अन्त होगा ही और जहां पृथ्वी का किनारा आएगा वहीं जल होगा। तात्पर्य यह है कि प्रत्यक्षगम्य वस्तुओं का उदाहरण देकर परोक्ष पदार्थों का ज्ञान कराया गया है। परोक्ष वस्तु ठीक तरह समझ में आ जाए, यही इन प्रश्नोत्तरों का प्रयोजन शिष्य विविध प्रकार के होते हैं। कोई-कोई तीव्र बुद्धि वाले साधारण संकेत से वस्तु का तत्त्व समझ लेते हैं और कोई मन्दबुद्धि विस्तारपूर्वक समझाने से ही समझते हैं। शास्त्रकार सभी पर अनुग्रहशील होते हैं। इसलिए सभी की समझ में आ जाए, इस विचार से उन्होंने और भी अनेक दृष्टान्त दिये हैं; जैसे धूप और छाया का अन्त होगा और जहां छाया आयेगी वहां धूप का अन्त होगा। कदाचित् यह कहा जाय कि लोक और अलोक को समझाने से क्या मतलब है? जब लोक और अलोक की बात ही निरर्थक है तो उसके लिए दृष्टान्तों की निरर्थकता आप ही सिद्ध हो जाती है। इस सम्बन्ध में इतना ही कहना पर्याप्त है कि हम लोग जहां रहते हैं, उस स्थान को संकुचित दृष्टि से क्यों देखें? जब मारवाड़ का रहने वाला कोई व्यक्ति मारवाड़ से बाहर जाता है तब वह अपना निवास स्थान मारवाड़ बतलाता है। अगर यूरोप में जाता है तो भारत को अपना निवास स्थान कहता है या अपने आपको एशिया-वासी कहता है। इस प्रकार वह अपने निवास स्थान को जब इतना व्यापक रूप दे देता है तो भगवान अगर सारे लोक को ही जीवों का निवास- स्थान मान कर उसका विवरणा देते हैं तो वह निरर्थक कैसे कहा जा सकता है? आखिरकार आप लोक में ही तो रहते हैं। ___अब अगर आप से कोई पूछे कि लोक तीन हैं, क्या आप तीनों लोकों में रहते हैं? तब आप उत्तर देंगे- तिर्छ लोक में। फिर आप से कहा जाय - भगवती सूत्र व्याख्यान १०५
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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