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________________ दिशाओं को स्पर्श करके प्रकाशित करता है। इसी प्रकार छहों दिशाओं को स्पर्श करके ही उयोतित करता है, तपाता है और प्रकाशित करता है। गौतम स्वामी फिर प्रश्न करते हैं-प्रभो! सूर्य क्षेत्र को जब स्पर्श करने लगा, तब 'चलमाणे चलिए' इस सिद्धान्त के अनुसार स्पर्श किया ऐसा कहा जा सकता है? भगवान् फरमाते हैं हां, गौतम ऐसा कहा जा सकता है। __ गौतम भगवान्! सूर्य जब उस क्षेत्र को स्पर्श कर ही रहा है, सब क्षेत्र को स्पर्श नहीं किया है, तब स्पर्श किया ऐसा कहा जाय? भगवान्–हां गौतम, कहा जा सकता है। गौतम-प्रभो! सूर्य स्पर्श किये हुए क्षेत्र का स्पर्श करता है, या स्पर्श न किये हुए क्षेत्र का स्पर्श करता है? भगवान् हे गौतम! स्पर्श किये हुए को स्पर्श करता है। इस प्रश्नोत्तर में ओभासेई, उज्जोएइ तवेइ, और पभासेई, यह चार क्रियापद आये हैं। इन चारों के अर्थ में क्या भेद है? यह देखना चाहिए। प्रातःकाल में पहले सूर्य की थोड़ी सी ललाई नजर आती है सूर्य का मंडल उस समय दिखाई नहीं देता है। सूर्य के उस प्रकाश को अवभास कहते हैं और उस समय प्रकाश करना अवभासित करना कहलाता है। सुबह और शाम को जिस प्रकाश में बड़ी बड़ी वस्तुएं दीखती हैं, छोटी नहीं दीखतीं, उस प्रकाश को उद्योत कहते हैं। उस समय बड़ी वस्तुओं का प्रकाशित होना उयोतित होना कहलाता है। जब सूर्य बहुत प्रकाश करता है, दैदीप्यमान हो जाता है तब उसके प्रकाश को प्रभास कहते हैं और उस समय वस्तुओं का प्रकाशित होना प्रभासित होना कहलाता है। सूर्य के प्रचंड प्रकाश से जो गर्मी फैलती है वह ताप कहलाता है और उस गर्मी को फैलाना सूर्य का तपन करना कहलाता है जहां शीत होता है वहां सूर्य का प्रखर प्रकाश पड़ने से गर्मी हो जाती है। वैज्ञानिकों ने भी यह स्वीकार किया है कि कई प्रकार का शीत ऐसा होता है कि सूर्योदय के पहले तक ठहरता है। सूर्योदय होने पर मिट जाता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि सर्दी से प्राण जा रहे हों उस समय अगर सूर्योदय हो जाय तो जाते हुए प्राण रह जाते हैं। जब शीत मिट जाय और छोटी-बड़ी सभी चीजें दिखाई देने लगें, तब कहा जाता है कि सूर्य तप रहा है। इसी का नाम 'तपति' है। भले ही सूर्य मण्डल न दिख पड़ता हो, परन्तु छोटी-छोटी चीजें अगर दिखाई देती हों, तब यह कहा जाता है कि सूर्य तप रहा है। तात्पर्य यह है कि गर्मी के प्रभाव से ६२ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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