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________________ दूर से आंखों से नजर आता है? गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने फरमाया-हां, गौतम! उगता हुआ और डूबता हुआ सूर्य, समान दूरी से आंखों से दिखाई देता है। यहां यह आशंका होती है कि गौतम स्वामी ने यह प्रश्न क्यों उठाया है? इसका क्या प्रयोजन है? सूर्य के संबंध में एक सौ चौरासी (184) मंडल का अधिकार कहा है! कर्क की संक्रान्ति पर सूर्य सर्वाभ्यन्तर (सब के पीछे वाले) मंडल में रहता है। उस समय वह भरत क्षेत्र में रहने वालों को 47263 योजन दूरी से दीखता है। इसीलिए यहां गौतम स्वामी ने जितनी दूर से इस प्रकार समुच्चय रूप में कहा है। इन्द्रियां दो प्रकार की है - प्राप्यकारी और अप्राप्यकारी। जो इन्द्रियां अपने ग्राह्य विषय को स्पर्श करके जानती हैं वह प्राप्यकारी कहलाती हैं। स्पर्शन, रसन, घ्राण और श्रोत्र- ये चार इन्द्रियां प्राप्यकारी हैं। जब तक स्पर्शनेन्द्रिय के साथ स्पर्श का संबंध न हो तब तक वह स्पर्श को नहीं जान सकती। इसी प्रकार रसना इन्द्रिय के साथ जब रस का स्पर्श होता है, तभी रसना को खट्टे मीठे आदि रस का ज्ञान होता है। यही बात घ्राण के संबंध में है। गंध के आधारभूत पुद्गल जब नाक को छूते हैं, तभी नाक सुगंध या दुर्गंध को जान पाता है। कान उसी शब्द को सुनता है, जो कान में आकर टकराता है। अतएव यह चारों इन्द्रियां प्राप्यकारी कहलाती हैं। केवल चक्षु इन्द्रिय अप्राप्यकारी है। अर्थात् वह अपने विषय रूप को छुए बिना ही, दूर से देख लेती है। स्पर्श होने पर तो वह अपने में रहे हुए काजल को भी नहीं देख पाती फिरों औरों की तो बात ही कहां है? प्रस्तुत प्रश्न में गौतम स्वामी ने चक्षु के साथ स्पर्श कहा है, अतएव यह प्रश्न उपस्थित होता है कि शास्त्र में एक जगह तो चक्षु को अप्राप्यकारी कहा है और यहां चक्षु के साथ सूर्य का स्पर्श होना क्यों कहा है? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि यहां चक्षु के साथ सूर्य का स्पर्श होना कहा है सो यह केवल अलंकार है। जैन शास्त्रों में तो बहुत कम अलंकारिक भाषा का प्रयोग किया गया है, परन्तु पुराणों में अलंकार का इतना बाहुल्य है कि कई लोग भ्रम में पड़ जाते हैं। अलंकारों के भीतर छिपी हुई बात को समझने का प्रयत्न करना चाहिए। उसी से सच्चाई का पता चलता है। यहां सूर्य और आंखों के स्पर्श का अर्थ यह नहीं है कि जैसे आंखों का काजल के साथ सम्बन्ध होता है, वैसा सूर्य के साथ भी होता है। सूर्य - भगवती सूत्र व्याख्यान ८६ 388888888888888888888888888885668 888888888888888888888838
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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