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________________ से भी उन्हें महावीर कहा है। भगवान् महावीर ने श्रुत धर्म की आदि की है, इस कारण वह 'आदिकर' कहलाते हैं। आचारांग आदि बारह अंग-ग्रंथ श्रुतधर्म कहलाते हैं। प्रथम अंग आचारांग से लेकर बारहवें अंग दृष्टिवाद तक का, जिनमें साधु के आचार धर्म से लेकर समस्त पदार्थों का वर्णन किया गया है, 'श्रुतधर्म' शब्द से व्यवहार होता है। इस श्रुतधर्म के आदिकर्ता अर्थात आद्य उपदेशक होने के कारण भगवान् महावीर को 'आइगरे' अर्थात् आदिकर या आदिकर्ता कहा गया है। बारह अंगों के नाम और उनका विषय-संक्षेप में इस प्रकार है 1. आचारांग-इस अंग में निर्ग्रन्थ श्रमणों का आचार गोचार' (भिक्षा लेने की विधि) विनय, विनय का फल, कायोत्सर्ग आदि स्थान, बिहारभूमि आदि में गमन, चक्रमण,आहार आदि का परिमाण (यात्रा), स्वाध्याय आदि में नियोग, भाषा समिति, गुप्ति, शट, उपाधि, भक्त-पान, उद्गम आदि, दोषों की शुद्धि, व्रत, नियम, तप आदि विषय वर्णित हैं। आचारांग में दो श्रुत स्कन्ध, पच्चीस अध्ययन, पचासी उद्देशनकाल और पचासी समुद्देशनकाल हैं। 2. सूत्रकृतांग-इसमें स्वसिद्धान्त, परसिद्धान्त स्व-परसिद्धान्त, जीव, अजीव, जीवाजीव, लोक, अलोक, लोकालोक, जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आम्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष रूप पदार्थ, एक सौ अस्सी क्रियावादी के मत, चौरासी अक्रियावादी के मत, सड़सठ अज्ञानवादी के मत, बत्तीस वैनयिक के मत, इस प्रकार तीन सौ त्रेसठ अन्यदृष्टियों के मतों का निराकरण करके स्वसिद्धान्त की स्थापना, आदि का वर्णन है। इसमें श्रुतस्कन्ध, तेईस अध्ययन तेतीस, उद्देशन काल और तेतीस समुद्देशन काल हैं। छत्तीस हजार पद हैं। 3. स्थानांग-इस अंग में स्वसमय का, परसमय का और स्व-परसमय का, जीव का, अजीव का, जीवाजीव का, लोक का, अलोक का, लोकालोक का वर्णन है। इसमें एक श्रुतस्कन्ध है। दस अध्ययन, इक्कीस उद्देशन काल, इक्कीस समुद्देशन काल और बहत्तर हजार पद हैं। ___4. समवायांग-इस अंग में स्वसिद्धान्त, परसिद्धान्त, स्व- परसिद्धान्त और क्रमशः एक आदि अंक-वृद्धिपूर्वक पदार्थों का निरूपण तथा द्वादशांगी रूप गणिपिटक के पर्यवों का प्रतिपादन है। इसमें एक अध्ययन, एक श्रुतस्कन्ध, एक उद्देशनकाल, एक समुद्देशनकाल तथा एक लाख चवालीस हजार पद हैं। - श्री भगवती सूत्र व्याख्यान ८३
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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