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________________ 'सव्वसाहूणं' का अर्थ हुआ-सुनने योग्य वाक्यों को सुनने में जो कुशल है, जो न सुनने योग्य को नहीं सुनता है, वह 'श्रव्य-साधु' कहलाता है। ___ 'सव्वसाहूणं' की संस्कृत छाया जब 'सव्यसाधुभ्य' की जाती है तब उसका अर्थ होता है कि जो अनुकूल कार्य करने में दक्ष हो ऐसे साधुओं को नमस्कार हो। यहां अनुकूल कार्य से ऐसे कार्य समझना चाहिए जो साधु संयम के पोषक हो -संयम से विपरीत न हो अथवा जिस उद्देश्य से उसने संयम धारण किया है, उस उद्देश्य मोक्ष के अनुकूल हों। ऐसा करने वाले साधुओं को नमस्कार हो। कहीं-कहीं 'नमो लोए सव्वसाहूणं' और कहीं कहीं 'नमो सव्वसाहूणं' पाठ पाया जाता है। इस संबंध में टीकाकार ने कहा है कि 'सव्व' शब्द कहीं कहीं एक देश की सम्पूर्णता के अर्थ में प्रयुक्त होता है। मान लीजिए भोज के अवसर पर किसी ने कहा-'सब मनुष्य आ गये हैं। यहां 'सब' शब्द का अर्थ क्या लिया जा सकता है? सब मनुष्य दिल्ली के, भारतवर्ष के या विश्वभर के समझे जाएं? अथवा भोज में निमंत्रित सब व्यक्ति लिए जाएं। निस्संदेह ऐसे अवसर पर 'सब' का अर्थ 'सब' निमंत्रित मनुष्य समझना होगा। यद्यपि निमंत्रित मनुष्य थोड़े से ही होते हैं फिर भी उनके लिए 'सब' शब्द एक देश की सम्पूर्णता को भी प्रकट करता है। ऐसी स्थिति में 'सव्व साहू' सिर्फ इतना कहने से यह स्पष्ट नहीं होता है कि किसी एक प्रकार के सब साधु, किसी एक देश के सब साधु अथवा किसी एक ही काल में सब साधु यहां ग्रहण किये गये हैं या सभी प्रकारों के, सभी देशों के और सभी कालों के साब साट यहां ग्रहण किये गये हैं। इस बात को स्पष्ट करने के लिए यहां 'लोए' शब्द का प्रयोग किया गया है। लोए अर्थात् लोक विद्यमान सभी साधुओं को नमस्कार हो। 'लोए' शब्द लगा देने पर भी आखिर प्रश्न खड़ा रहता है कि 'लोक' शब्द से यहां कौनसा लोक समझा जाये? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि साधु अढ़ाई द्वीप रूप मनुष्य लोक में ही हो सकते हैं, अतएव लोक शब्द से मनुष्य लोक का ही अर्थ समझना चाहिए। इस प्रकार 'नमो लोए सव्वसाहूणं' का अर्थ होता है-'मनुष्य लोक में विद्यमान सब साधुओं को नमस्कार हो।' "लोक शब्द का प्रयोग करने से सारे मनुष्य लोक के साधुओं का समावेश हो गया। किसी गच्छ या सम्प्रदाय विशेष की संकुचितता के लिए विकास नहीं रहा। साधु किसी भी गच्छ का हो, जिसमें ऊपर बतलाये हुए गुण विद्यमान है, वन्दनीय है। जिन्होंने अज्ञान-अंधकार को दूर करके ज्ञान - श्री भगवती सूत्र व्याख्यान ४३
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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