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________________ चय और परिमणमन के काल में बहुत अन्तर है। पहले परिणमन होता है, उसके बाद चय होता है। इसलिए चय और परिणमन दोनों पृथक-पृथक हैं। ज्ञानी महापुरुषों ने भूतकाल का वर्णन किया है, इससे उनकी त्रिकालज्ञता सिद्ध होती है। साथ ही नरक-लोक के प्राणियों के आहार के विषय में हमें जानकारी होती है। वर्तमान काल में जो जीव नरक में हैं और आगे नरक में जाएंगे, उनको कैसा आहार करना पड़ता है या करना पड़ेगा, यह भी हमें विदित हो जाता है। तीसरे भंग से यह भी प्रकट हो जाता है कि भूतकाल में तो यह आहार नहीं किया, मगर भविष्य में करेंगे। उस समय होंगे वे भी करेंगे और नरक में जाएंगे वे भी करेंगे। इस कथन से नरक का शाश्वतपन सिद्ध किया गया है। न भूत में आहार किया है, न भविष्य में आहार करेंगे, यह कथन अव्यवहारराशि को सूचित करता है; क्योंकि अव्यवहारराशि के जीव उस राशि से न कभी निकले हैं न निकलेंगे। चय के पश्चात् उपचय का कथन है। जो चय किया गया है, उसमें और-और पुद्गल इकट्ठे कर देना उपचय कहलाता है। जैसे, ईंट पर ईंट चुनी गई यह सामान्य चुनाई कहलाई और फिर उस पर मिट्टी या चूना आदि का लेप किया गया, यह विशेष चुनाई हुई। इसी प्रकार सामान्य रूप से शरीर का पुष्ट होना चय कहलाता है और विशेष रूप से पुष्ट होना उपचय कहलाता है। कर्म-पुद्गलों का स्वाभाविक रूप से उदय में न आकर करण विशेष के द्वारा उदय में आना उदीरणा कहलाता है। प्रयोग के द्वारा कर्म का उदय में आना उदीरणा है, इस प्रकार की 'कर्म-प्रकृति की साक्षी भी यहां दी गई है। ___ कर्म के फल को भोगना वेदना है। जिस समय से कर्म-फल का भोग आरम्भ होता है और जिस समय तक भोगना जारी रहता है, वह सब काल वेदना का काल कहलाता है। एक देश में कर्मों का क्षय होना निर्जरा है। जिस कर्म का फल भोग लिया जाता है, वह कर्म क्षीण हो जाता है। उसका क्षीण हो जाना निर्जरा है। चय, उपचय, उदीरणा, वेदना और निर्जरा, इन सब के विषय में परिणमन के समान ही वक्तव्यता है। वैसे ही प्रश्न, वैसे ही उत्तर, वैसे ही भंग समझने चाहिएं। सिर्फ परिणत के स्थान पर चित, उपचित, उदीरत आदि शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। २५८ श्री जवाहर किरणावली 888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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